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हिन्दी अनुवा
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अनेक रंगोंवाले नेत्रोंसे राग करनेवाला अनुरक्त विश्व उस समय एकरंगका हो गया । भौंहोंकी वक्रतासे उसने किसकी घूर्तता और वक्रताका अपहरण नहीं किया। उसका केशपाश अंगोपांग- प्रदेशोंके निकट आते हुए दूसरोंके चित्तोंके लिए पाशके समान था। जिसके रूपका बृहस्पति भी वर्णन नहीं कर सकता। नागराज भी जिसका वर्णन नहीं कर सकता। वह जब आँखें बन्द किये हुए, श्री हमें सातवीं भूमिपर, चन्द्रकिरणोंसे हिमकणोंको ग्रहण करती हुई अलसाये अंगविलासको धारण करती हुई रात्रिमें सोयी हुई थी कि मनहर उद्यानमें यशोधर नामक जिनवर आये। देवसमूह कहीं भी नहीं समा सका । योणा-वंश और मृदंगों के मिनादों, नाना स्तोत्रवृत्तों की स्तुतिशब्दों से भारी कोलाहल उठा । उससे कन्याका निद्राभार खुल गया ।
२२. ९.१४ ]
पत्ता- वहाँ देवों को देखते हुए उसके जन्मावरण एक क्षणके लिए हट गये। स्वर्गके जन्मान्तरोंको याद कर उसके मनमें ललितांगको लोलाऐं बैठ गयीं ||८||
ललितांग क्षेत्र | यह कहती हुई, अपना सिर पीटती हुई धरतीपर गिर पड़ी। मूच्छित उसे पानीको धारासे सोचा गया। चंचल चमरोंकी हवासे आश्वस्त हुई। अत्यन्त दुबली वह निश्वास लेती हुई उठी, प्रियके वियोगको अनुभूतिसे खिन्न। कामदेव उसके बाठों अंगों को जलाता है। डाला हुआ कष्टकर गीला वस्त्र जलता है, मलयपवन प्रलयानक जान पड़ता है, भूषण हाथमें ऐसा लगता है जेसे सन बंधा हुआ हो । जहाँ चित्तके सौ टुकड़े हो गये हों वहाँ शीतल वातदलसे क्या किया जाये ? स्नान शोकस्तान के समान उसे अच्छा नहीं लगता, वस्त्रको वह व्यसन के समान समझती है, प्राणोंके आहार की तरह वह आहार ग्रहण नहीं करती । नन्दनवनको वह प्रेतवन समझती है। फूल नेत्रकी फुलीके समान असुहावना लगता है, ताम्बूल भी बोलकी तरह सन्तापदायक है। पुर यमपुरके समान और घर भी अरतिकर है। कोकिलका मधुर आलाप मानो विष है । गीतका स्वर ऐसा लगता है जैसे शत्रुके द्वारा मुक्त तीर हो । चन्दनादिका लेप स्वबल घातक के समान धैर्यं हरण करनेवाला था । चन्दन विरकी ज्याला के लिए ईंधन था । सहेलियोंने जाकर राजा से निवेदन किया ।
पत्ता-- ( अपनी पत्नी) लक्ष्मीवतीके साथ आकर लम्बी बांहावाले नरवरनाथने प्रियस्मरणसे दुःखित मन कन्याको देखा || २ ||