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हिन्दी अनुवाद स्वर्णधूलि रससे पीला है, जिसकी चट्टाने गजदन्तोसे विदीर्ण हैं, जिसका आकाश मणियोंकी किरणोंसे चितकबरा हो गया है, जिसके शिखरोंको इन्द्र-विमानोंने उठा रखा है, जो आसीन देवों और असुरोंसे सुन्दर है, ऐसे सुमेरु पर्वतकी वन्दना-भक्तिके लिए गया। जिनमें श्रीमद्रसाल नन्दनवन हैं तथा सौमनस सरस पाण्डुकवन हैं, जिनमें नागराजको कामिनियोंके नूपुरोंका स्वर हो रहा है, जिनमें चन्द्रमाके समान उज्वल चमर बोरे जा रहे हैं, किन्नरोंके द्वारा सैकड़ों स्तोत्र प्रारम्भ किये जा रहे हैं, जो मनुष्योंके जन्म-जन्मातरोंको नष्ट करनेवाले हैं, जो अकृत्रिम है, जिनमें तोरण लटके हुए हैं, ऐसे जिनप्रतिमाओंके मन्दिरों में प्रवेश कर, उसने सिंहासनों और वेदियोंको अलंकृत किया तथा चैत्य ( प्रतिमा) की परिक्रमा और पूजा की।
पत्ता-नरश्रेष्ठ, विद्याधर राजाओंके गुरुने निर्माल्यका कमल अपने हाथमें ले लिया, जो मानो सुन्दर मधुकरको ध्वनियोंसे कह रहा था कि पापरूपी जलसे तर ॥२॥
उस अवसरपर अपने दोनों हाथ उठाये हुए धारणयुगल मनि वहां आये। उनके शरीरपर मल था, परन्तु उनके ध्यान में मल नहीं था। दूसरोंको सतानेके लिए उनके पास बल नहीं था, उनके सुतपर्मे बल था। जिनका यश भ्रमण करता था, जिनका मन भ्रमण नहीं करता था। आकाश भग्न होता था, उनका शीलगुण नष्ट नहीं होता था। उनको भौंहों में टेढ़ापन दिखाई देता था, उनको मतिमें कहीं भी वक्रता नहीं थी। उन्हें परमागममें रस बाता था, उनमें कामरस नहीं था। वह धर्मके वशीभूत थे, वह धन नहीं चाहते थे। जिनके सिरमें बालोंको जड़ता जा चुकी थी, परन्तु सात नयों को जाननेवाला उनका मस्तिष्क जड़ताको प्राप्त नहीं हुआ था। जिनके आठों दुर्मद नष्ट हो चुके थे, परन्तु उन्होंने पाँच इन्द्रियोंपर कभी दया नहीं की। ऐसे उन दोनों चारण मुनियोंकी उसने बन्दना की। स्वयंबुद्धि अपनी निन्दा करने लगा-मैं आज भी इस प्रकार तप नहीं कर रहा हूँ। मैं अपवित्रताका कितना पोषण कर रहा हूँ।
पत्ता- लक्ष्मीके पर पूर्वविदेहमें महाकच्छप नामका देश है। सुमेरु पर्वतके समान शिखरवाले उस नगरसे आया हुआ वह चारणयुगल मुनि उसे समझाता है |शा
जो सुगन्धर अर्हन्तके तीर्थरूपी सरोवरमें स्नान कर लेता है, वह संसारको ज्वालामें नहीं पड़ता। उस युगल में एक मुनिका नाम आदित्यगति था और दूसरेका शुद्धमति मरिंजय । स्वयंबुद्धिने उन दोनोंसे पूछा कि आप लोग तीन ज्ञानरूपी जलोंके मेघ है, मेरे स्वामी महाबलके बारेमें बताइए कि वह भव्य है या अभव्य ? यह सुनकर त्रस और स्यावर जीवोंकी गतिको जाननेवाले उनमें से जेठे मुनि कहते हैं--"इस जम्बूद्वीपके दक्षिण भारतमें आगे प्रथम कर्मभूमिका प्रवेश