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२०.१२.८]
हिन्चो अनुवाद बुद्धिके प्रकाशसे दूसरेके पास जाता है, बिना इनके ( इन्द्रियों और बुद्धिके प्रकाशके बिना ) स्वर्ग कैसे जाता है । पुण्यभावसे पत्थरकी पूजा क्यों की जाती है। जिसके ऊपर ( धरती या पत्थर) जीवलोक मलका रयाग करता है, दूसरे जन्म में उसने क्या पाप किया? जलके बुख़ुद पदि कर्मसे होते हैं, तो जीव भी कर्मसे होते हैं । हे राजन् , इसमें भ्रान्ति मत करो।
____घत्ता-पुण्य-पाप किसके ? बिना भूतों { पृथ्वी-जलादि ) के जीव कहाँ दिखाई दिया ? पाखण्डियोंके द्वारा जो बहकाया जाता है, मैं समझता हूँ वह चोरोंके द्वारा ठगा गया ? ॥१७॥
यह सुनकर मन्त्रियोंमें चौथे स्त्रबुद्धिने जो शान्ति और अहिंसा धर्मका पालन करता है, शास्त्रज्ञ है और गपका-सावक है जाला मस्सा मार करने कहा, "चार द्रव्योंसे उत्पन्न मदिरासे लोगोंमें एक ही स्वाद और मद दिखाई देता है, लेकिन लोक, देह और भावसे भिन्न हैं ( जबकि भूतचतुष्टयसे उत्सन्न होनेके कारण उसे एक होना चाहिए ) तुम्हारा भूतयोग किस प्रकार निर्मित होता है ? उन बन्योंसे वह वैसा ही होगा। हे संयोगवादी, यह विचित्रता कैसी ? आग पानीसे शान्त होती है, और पानी शीघ्र उसके द्वारा (आग ) सोख लिया जाता है। पवन चंचल है, धरती स्थिर और जड़ है, इस प्रकार एक दूसरेसे भिन्न स्वरूपवालोंकी मिलाप युक्ति कहा ? बिना जीव (चेतना) के जीव कहाँ मिलते हैं; वे शरीरके आकारके रूपमें परिणत नहीं हो सकते । यदि परिणत होते हैं, तो तुम कुकारण कहते हो, और तब काढ़ेके पिण्ड में शरीर उत्पन्न होना चाहिए।
पत्ता-पांच इन्द्रियोंसे विवर्जित मनसे रहित, चैतन्यमात्र अज्ञानी जीक किस प्रकार उत्पन्न हो सकता है, और किस प्रकार स्वर्गमें सुरवरोंका इन्द्र होता है ? तुम्हीं बताओ ? ॥१८॥
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___ जगमें पदार्थ गुणके साथ दिखाई देता है, जिस प्रकार निश्चेतन चुम्बक पत्थरके घर्षणसे आग प्रकट होती है, उसी प्रकार कर्मों के बन्धसे जीव पैदा होता है । तुमने जो कहा कि बहपूजाको धारण करनेवाले पत्थरसे क्या दुनियामें पुण्य किया जाता है ? निग्रह करनेवालेसे वह क्रोध नहीं करता है, और न भोगोंका परिग्रह करनेवाले से सन्तुष्ट होता है। निर्जीव वह न तो सुख जानता है और न दुःख । जहाँ जीव हैं, वहीं हूँ उनके द्वारा ( सुख-दुःखके द्वारा ) देखा जाता है । हे भूतवादी, तूं भूतों के द्वारा मुक्त है, तूं जिनवरके वचनोंका रहस्य नहीं जानता। हे वितण्डावादो पण्डित, दुनी काव्य मी करते हो, अनिबद्ध और असंगत कथन क्यों करते हो ?" उस अवसरपर सम्भिावाने पहा-"जोब जिस क्षणमें उत्पन्न होता है, वह क्षण विनश्वर है।