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२१. ७.४ ]
हिन्दी अनुवाद
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जहाँ पक्षियोंकी चोंचों से आहत पड़े हुए पके आमोंके गुच्छोंके लिए दोड़ते हुए दान रोंके द्वारा मुक्त धीर बुक्कार ध्वनियोंसे त्रस्त और भागती हुई राजरमणियोंके पैरोंके अग्रभागसे गिरे हुए नूपुरोंकी लगी हुई हेमरत्न किरणोंसे लताघरोंके मध्यभाग स्फुरित हैं ||७||
जिसके भूप्रदेश, मुगकी कोड़ा विस्तारको उड़ानकी सीमामें बसे हुए गांव, पुर, नगर, खेड़ा, कब्बड, मडंब, संवाह और ज्ञानियोंसे रमणीय हैं ||८||
नरसिंह ब्रझर र कुहियोंके द्वारा रचित सिद्धान्तों से शून्य है तथा बीतरागनी जलसे धोये गये लोगों के अन्तरंगोंसे शुद्ध है और स्वभावसे सोम्य है ॥९॥
घोर और वीर तपश्चरणके करने में परिणत मुनीन्द्रोंके चरणकमलोंके वन्दनमें लगे हुए नरयुग्मोंकी महान् चरित्र भक्ति से जिसने पापमलके मवलेपको नष्ट कर दिया है ||१०||
पत्ता - जहाँ मध्य में स्थित विजयार्धं पर्वत ऐसा दिखाई देता है, मानो पृथ्वीको मापते हुए विधाताने रजत दण्ड स्थापित कर दिया हो ॥५॥
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उसकी उत्तर श्रेणी में, जहाँ विद्याधर रमण करते हैं, ऐसी अलकापुरी नामकी नगरी है, जो खिले हुए कमलों के परागवाले परिखा जलसे घिरी हुई है जो शत्रुपक्ष के चित्तको क्षुब्ध करनेवाले परिधान से शोभित है ।
बँधे हुए रत्नोंसे विचित्र प्राकाररूपी स्वर्ण कटिसूत्र, नाना द्वारों, मणि- तोरणोंसे ऐसी मालूम होती है मानो कण्ठके आभूषणोंसे शोभित हो। नन्दनवनरूपी नोलकेशवाली वह नगरी ऐसी मालूम होती है जैसे कोई अपूर्व वेश्या अवतरित हुई हो । जहाँ शिखरमणियोंसे आकाशतलको चूमने वाले सात भूमियोंवाले घर हैं, मानो वह नगरी धूपके सुन्दर घुसे निश्वास लेती है, मानो मुक्तावलीरूपी दाँतोंसे हँसती है, भानी भ्रमरोंको शंकारसे हंसती स्वरोंको मिनती है, मानो विशाल गवाक्षोंके कानोंसे सुनती है। उसके ध्वजपट ऐसे हैं मानो अपने करतलको हिला रही है, मानो मयूरके स्वरोंके बहाने वह कहती है कि हमारे समान दिव्य गेह कौनकौन हैं ? जहाँ गृहशिखरोंपर अवलम्बित नीले मेघ पीड़ित करों और आरक्त हस्ततलोंवाली प्रोषितपतिका स्त्रियोंके लिए सन्तापदायक हैं।
पत्ता -- सन्ध्या समय सोकर उठी हुई विरहिणीने शृंगारसे रहित अपने मुखकमलको मणिमय दीवालपर देखा और अपनेको निकृष्ट समझा || ६ ||
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जहाँ वधुओंके पैरोंके आलक्त विलास, पद्मराग मणियोंकी प्रभाओंसे हटा दिये गये हैं । घर जबतक हरे और नीले मणियोंसे नीले हैं, तबतक नेत्र काजलकी शोभा धारण नहीं कर पाते, नत्रमुखी स्त्रियां इस कारण जहाँ दुखी होती हैं। जहाँ रंगावलीके प्रकारोंकी निन्दा करती