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२१. १०. २१]
हिन्दो अमुवान हरण करनेवाली लावण्य योनि, मानो घररूपो सरोवरको रतिसुख देने वाली हंसिनी, मानो घररूपी वृक्षको अलंकृत करनेकी लता, मानो पापोंको शान्त करनेवाली धररूपी वनकी देवता, मानो घररूपी पूर्णचन्द्रकी पूर्ण बिम्घकान्ति, मानो घररूपी गिरिमें रहनेवाली यक्षपत्नी और मानो लोगोंको दशमें करनेवाली मन्त्राक्ति थी। अलकापुरीको धरतीके स्वामी उस विद्याधरको एक पुत्र उत्पन्न हुआ।
पत्ता-उस पुत्रके उत्पन्न होने से समस्त दुजैनसमूह पीड़ित हो उठा। लेकिन उसका अपना गोत्र हर्षसे उसी प्रकार विकसित हो गया जिस प्रकार नवदिवसके अधिपत्ति सूर्यसे कमल विकसित हो जाता है .....:.::...:. :: .. .. .....
कूर्मको तरह उन्नत क्रम ( चरण ) अजेय पराक्रमी, सिंहके समान कटितलवाले, विकट उरस्थलवाले स्वर्णप्रभ-नवमेघकी अनिवाले, कुलके चूड़ामणि, ऐरावतको सँड़के समान हायवाले, तरुणियों के लिए सुन्दर, वृषभराजके समान कन्धोंवाले, राज्यमें धुरन्धर, गुणोंसे अनोंको रंजित करनेवाले, अभिनव यौवन और उन्नतभालवाले अपने पुत्रको देखकर, भ्रमरोंके समान बालोंवाले राजा अतिबलने विचार किया, "मनुष्यका शरीर हड्डियोंका ढांचा है, कृमिकुलसे व्याप्त, रुधिरसे वीभत्स, लारसे घिनौना, आंतोंकी पोटली और मरघटका पात्र, पक्षियोंका भोजन, सोलह गुफाओं
और नो द्वारवाला है। यह कामसे जीत लिया जाता है, लोभोंसे ग्रहण किया जाता है, क्रोधसे तपता है, क्षमासे ठण्डा होता है, कर्मसे बंधता है, मोहसे मूछित होता है, सत्य से भिदता है, रोगसे क्षीण होता है, जरासे नष्ट होता है, काल खा जाता है।"
पत्ता-राजाने तब अपने पुत्रसे कहा-"अपनी परम्परामें तुम शान्ति स्थापित रखना। तुम राज्यश्रीका भोग करो, में अब निर्वाणको लिए जाऊँगा।" ॥१०॥