________________ स्वरसन्धिः अवर्ण इवणे ए॥२७॥ इवणे परे अवर्ण ए भवति परश्च लोपमापद्यते / वर्णग्रहणे सवर्णग्रहणम् / देवेन्द्रः / कान्तेयम् / हल ईषा। लाङ्गल ईषा / इति स्थिते। हललाङ्गलयोरीषायामस्य लोपः // 28 // हललाङ्गलयोरस्य लोपो भवति ईषायां परत: / हलीषा। लाङ्गलीषा // मनस् ईषा / इति स्थिते। मनसः सस्य च // 29 // मनसोऽस्य सस्य च लोपो भवति ईषायां परत: / मनीषा // गन्ध उदकम् / माला ऊढा। इति स्थिते। उवणे ओ॥३०॥ उवणे परे अवर्ण ओ भवति परश्च लोपमापद्यते। गन्धोदकम्। मालोढा / तव ऋकारः। सा ऋकारेण / इति स्थिते। ऋवणे अर् // 31 // ऋवणे परे अवर्ण अर् भवति परश्च लोपमापद्यते। पूर्वव्यञ्जनमुपरि परव्यञ्जनमधः // रेफाक्रान्तस्य द्वित्वमशिटो वा // 32 // रेफाक्रान्तस्य वर्णस्य द्वित्वं भवत्यशिटो वा। इवर्ण के आने पर अवर्ण को 'ए' होकर अगले स्वर का लोप हो जाता है // 27 // यहाँ सूत्र में वर्ण के ग्रहण करने से सवर्ण का ग्रहण हुआ समझना चाहिये। अत:देव् अ+ इन्द्रः = देव् ए+न्द्र:= देवेन्द्रः। कान्त् आ+ इयं = कान्त् ए+यं = कान्तेयम् / हल + ईषा, लांगल+ ईषा। ईषा के आने पर हल और लाङ्गल के 'अकार' का लोप हो जाता है // 28 // हल्+ ईषा= हलीषा, लागल+ ईषा = लागलीषा / मनस्+ ईषा। ... ईषा के आने पर 'मनस्' के 'अस्' का लोप हो जाता है // 29 // मन् अस्+ ईषा=मनीषा। गंध+ उदकम्, माला+ऊढा। उवर्ण के आने पर अवर्ण को 'ओ' हो जाता है॥३०॥ अर्थात् आगे उवर्ण के आने पर पूर्व के अवर्ण को 'ओ' होकर अगले उवर्ण का लोप हो जाता है। जैसे—गंध ओ दकम् = गंधोदकम्, माल् ओ ढा = मालोढा। तव + ऋकारः, सा +ऋकारेण / ऋवर्ण के परे अवर्ण को अर हो जाता है // 31 // अवर्ण से परे ऋवर्ण के आने पर 'अवर्ण' को 'अर्' हो जाता है और ऋवर्ण का लोप हो जाता है तब तव अर् कारः = 'तवारः' बन जाता है पुन: यह अर्थ रकार यदि व्यञ्जन से पूर्व में रहता है तो ऊपर चला जाता है और यदि व्यञ्जन से आगे रहता है तो नीचे लग जाता है। शिट् के न होने पर रेफ से सहित अक्षर को विकल्प से द्वित्व हो जाता है // 32 // . शिट् किसे कहते हैं ?