________________ कृदन्त: 327 चक्षिङ ख्याङ्॥५९२॥ चक्षिङ् इत्येतस्य ख्याङादेशो भवति असार्वधातुके / गां संचष्टे गोसंख्यः / गष्टक्॥५९३॥ कर्मण्युपदे गायतेष्टक् भवति / मधुरं गायतीति मधुरगी। सामगी। सुरासीध्वोः पिबतेः // 594 // सुरासीध्वोरुपपदयोः पिबतेष्टग्भवति / सुरापी। सीधुपी। होऽच् वयोऽनुद्यमनयोः / / 595 // कर्मण्युपपदे हरतेरज् भवति वयसि अनुद्यमने गम्यमाने / ऊर्ध्वं नयनमुद्यमनं ततोऽन्यदनुद्यमनं / कवचहरः क्षत्रियकुमारः। आङि ताच्छील्ये // 596 // कर्मण्याङि चोपपद्रे ताच्छील्यार्थे हरतेरज् भवति / पुष्पाणि आहर्तुं शीलमस्य पुष्पाहरो विद्याधरः / अहेच // 597 // कर्मण्युपपदे अर्हतेरज् भवति / पूजामर्हतीति पूजार्हः / धृजः प्रहरणे चादण्डसूत्रयोः // 598 // चक्षिङ् धातु को असार्वधातुक में ख्याङ् आदेश होता है // 592 // गां संचष्टे गोसंख्यः। ____ कर्म उपपद में गा धातु से 'टक्' प्रत्यय होता है // 593 // मधुरं गायतीति मधुरगी। सुरा, सीधु उपपद में होने पर 'पा' धातु से टक् प्रत्यय होता है // 594 // सुरापी, सीधुपी। कर्म उपपद में रहने पर वयस् और अनुद्यमन अर्थ में ह धातु से 'अच्' प्रत्यय होता है // 595 // किसी वस्तु को उठाते हैं तो ऊपर करना होता है उद्यमन कहलाता है और इससे विपरीत अनुद्यमन कहलाता है। कवचं हरतीति = कवचहरः / कर्म और आङ् उपपद में होने पर तत् स्वभाव अर्थ में ह धातु से अच् होता है // 596 // पुष्पों के ग्रहण करने का है स्वभाव जिसका उसे कहते हैं पुष्पाहर: विद्याधरः / कर्म उपपद में रहने पर अर्ह धातु से अच् होता है // 597 // पूजाम् अर्हति इति पूजार्हः। दण्ड सूत्र वर्जित प्रहरणवाचक उपपद के होने पर 'धृ' धातु से अच् प्रत्यय होता है // 598 //