Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 384
________________ कृदन्त: 349 दधातेहिः // 720 // दधातेर्हिर्भवति तकारादावगुणे / अभिहितः / अभिहितवान् / स्वरान्तादुपसर्गात्तः // 721 // स्वरान्तादुपसर्गात्परस्य दासंज्ञकस्य तो भवति तकारादावगुणे। प्रत्तं प्रत्तवान् / नित्तं नित्तवान् / दहोऽधः // 722 // अधेटो दासंज्ञकस्य दद्भभवति तकारादावगुणे / दत्त: दत्तवान् / दत्त्वा दत्ति: / धाव् गति शुद्धयोः / छ्वोः शूठौ। अवर्णादूठो वृद्धिः / / 723 // अवर्णात्परस्य ऊठो वृद्धिर्भवति / धौतः / आदिकर्मणि क्तः कर्तरि च // 724 // आदिक्रियाणां कर्तरि च तो भवेदिति वेदितव्यः / प्रकृत: कटं भवान् / प्रकृत: कटो भवता। सुप्तो भवान् / प्रसुप्तं भवता / प्रशब्द: आदिक्रियाद्योतकः / गत्यर्थाकर्मकश्लिषशीस्थासवसजनरुहजीर्यतिभ्यश्च // 725 // गत्यर्थेभ्य: अकर्मकेभ्य: श्लिषादिभ्यश्च कर्तरि क्तो भवति / गतो ग्रामं भवान् / ग्रामो भवता प्राप्तः / ग्रामं भवान् प्राप्त: / प्राप्तो ग्रामो भवता / गतोऽयं गतमनेन / प्राप्तोऽयं प्राप्तमनेन / अकर्मकात् / शयितो भवान् शयितं भवता / श्लिषादय: सोपसर्गा: सकर्मका: आश्लिष्टो गुरुं भवान् / आश्लिष्टो गुरुर्भवता 'धा' धातु को 'हि' आदेश हो जाता है // 720 // तकारादि अगुण विभक्ति के आने पर / अभिहित: अभिहितवान् / स्वरांत उपसर्ग से परे दा संज्ञक धातु को तकारादि अगुण विभक्ति के आने पर 'त्' हो जाता है // 721 // प्रदा त = प्रत्तं प्रत्तवान् नित्तं नित्तवान् / धेट को छोड़कर दा संज्ञक को तकारादि अगुण विभक्ति के आने पर 'इ' आदेश हो जाता है // 722 // ___ दत्त: दत्तवान् / दत्त्वा, दत्ति: / धाव्–गमन करना शुद्ध होना। धाव् त 'छ्वोः शूठौ पञ्चमे च' 661 सूत्र से व् को ऊ होकर अवर्ण से परे 'ऊ को वृद्धि हो जाती है // 723 // धा औ= धौत: धौतवान् / ____ आदिक्रिया और कर्ता में 'क्त' प्रत्यय होता है // 724 // प्रकृत: कटं भवान्–आपने चटाई बनाना आरम्भ किया। प्रकृत: कटः भवता-आपने चटाई बनाई / सुप्त: भवान् प्रसुप्तं भवता / यहाँ 'प्र' शब्द आदि क्रिया का द्योतक है। - गत्यर्थ, अकर्मक और श्लिषादि धातु से कर्ता में 'क्त' प्रत्यय होता है // 725 // . गत: प्राप्त:, भवान् ग्रामं प्राप्त:, भवता ग्राम: प्राप्त: अयं गतः, अनेन गतम् / इत्यादि / अकर्मक

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