Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 394
________________ कृदन्त: 359 ईषहुःसुषु कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेषु खल्॥७७७ // कृच्छं दुःखं दुरोऽर्थः / अकृच्छं सुखं सोरर्थः / एषूपपदेषु कृच्छाकृच्छ्रार्थेषु खल् भवति भावे कर्मणि कर्तरि च / ईषदप्रयासेन क्रियत इति ईषत्करः कटो भवता / दुष्करः / सुकरः / ईषद्बोधं काव्यं / दुर्बोधं व्याकरणं / सुबोधं अध्यात्म। कतृकर्मणोश्च भूकृञोः // 778 // - ईषदादिषूपपदेषु आभ्यां कर्तृकर्मणोः खल् भवति। ईषदाढ्यस्य भवनं ईषदाढ्यंभवं / भवता दुराढ्यंभवं / भवता स्वाढ्यंभवं / ईषदाढ्यः क्रियते ईषदाढ्यंकरो भवान् / दुराढ्यङ्करः / स्वाढ्यंकरः // __आढ्यो य्वदरिद्रातः // 779 // ईषदादिषूपपदेषु आकारान्तेभ्यो युर्भवति अदरिद्राते // ईषत्पान: सोमो भवता / दुष्पान: / सुपानः / ईषद्यान: / दुर्यान: सुयानः / ईषद्दाना / दुर्दाना / सुदाना। - अलंखल्वोः प्रतिषेधयोः क्त्वा वा // 780 // अलं खलु शब्दयोः प्रतिषेधार्थयोरुपपदयोर्धातो: क्त्वा वा भवति / अलंकृत्वागच्छति / खलुकृत्वा / अलंभुक्त्वा / खलुभुक्त्वा / अलङ्करणेन / खलुकरणेन / अलं भोजनेन / खलुभोजनेन। क्त्वामसन्ध्यक्षरान्तोऽव्ययं // 781 // क्त्वामकारसन्ध्यक्षरान्ताश्च कृत्संभवा अव्ययानि भवन्ति / अव्ययाच्चेति विभक्तीनां लुक् एककर्तृकयोः पूर्वकाले // 782 // ईषत् दुर् और सु उपपद में रहने पर कृच्छ्र अकृच्छ्र अर्थ में 'खल्' प्रत्यय होता है // 777 // कृच्छ्र-दुःख, अकृच्छु–सुख, ईषत्-बिना प्रयास के। यह 'खल्' प्रत्यय भाव, कर्म और कर्ता में होता है। ईषत् अप्रयासेन क्रियते इति ईषत्कर: कट: दुष्कर: सुकरः। ईषद् बोधं-काव्यं, दुर्बोधं-व्याकरणं सुबोधम् अध्यात्म।। ईषत् दुर् सु उपपद में होने पर भू कृ धातु से कर्ता और कर्म में 'खल्' प्रत्यय होता 'है // 778. // ईषद् आढ्यस्य भवनं = ईषद् आढ्यं भवं दुराढ्यं भवं स्वायंभवं / ईषदाढ्य: क्रियते = ईषदाढ्यंकर: भवता दुराढ्यंकर: स्वायंकरः / खानुबंध से अकारांत से परे अनुस्वार का आगम होता है। ईषदादि उपपद में होने पर दरिद्रा को छोड़कर आकारांत से 'यु' होता है // 779 / / ईषत्पान: यु को 'अन' हुआ है / दुष्पान: सुपान: ईषद्यान: ईषद्दान: इत्यादि। अलं और खलु ये प्रतिषेध अर्थ वाले शब्द उपपद में होने पर धातु से 'कृत्वा' प्रत्यय विकल्प से होता है // 780 // ___ अलंकृत्वा, खलुकृत्वा, अलंभूक्त्वा खलु भुक्त्वा / पक्ष में—अलंकरणेन, खलुकरणेन, अलंभोजनेन खलु भोजन क्त्वा नकार संध्यक्षरान्त कृत् प्रत्यय से बने शब्द अव्यय होते हैं // 781 // 'अव्ययाच्च' इस सूत्र से विभक्तियों का लोप हो जाता है। एक कर्तृक दो धात्वर्थ के मध्य में पूर्व क्रिया के काल में वर्तमान धातु से 'क्त्वा' प्रत्यय होता है // 782 //

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