Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 398
________________ कृदन्तः 363 यावति विन्दजीवोः // 799 // यावदित्यनिर्दिष्टवाची यावदित्युपपदे विन्दतेर्जीवतेश्च णम् भवति / यावद्वेदं भुङ्क्ते / यावन्तं लभते तावन्तं भुङ्क्ते इत्यर्थः / यावज्जीवमधीते / यावन्तं जीवति तावन्तं अधीते इत्यर्थः / उपमाने कर्तरि कर्मणि चोपपदे धातोर्णम् भवति / चुडक इव नष्टः / चूडकनाशं नष्टः / गुरुरिव अभवत् गुरुभावमभवत् / रत्लमिव निहितं रत्ननिधायं निहितं / निमूलसमूलयोः कषः / / 801 // निमूलसमूलयोः कर्मणोरुपपदयोः कषतर्णम् भवति। निमूलकाषं कषति निमूलं कषतीत्यर्थः / समूलकाषं कषति समूलं कषतीत्यर्थः / अभ्रकाषं कषति अभ्रंकषतीत्यर्थ: / ओदनमिव पक्क: ओदनपाकं पक्कः / इत्यादि प्रयोगादनुसतव्यम्। स्त्रियां क्तिः / / 802 // धातो वे क्तिर्भवति स्त्रियां / घोषवत्योश्च कृतीति नेट् / भूयते भवनं वा भूति: / नवनं नुतिः / स्तवनं स्तुतिः / वर्धनं वृद्धिः / धारणं धृतिः / वर्तनं वृत्तिः / यजनं इष्टिः / श्रु विश्रवणे श्रवणं श्रुतिः / बुध अवगमने बोधनं बुद्धिः / कारणं कृति भ्रम अवस्थाने भ्रमणं, पञ्चमोपधाया धुटि चागुणे इति उपधाया दीर्घः भ्रान्तिः / ऋल्वादिभ्योऽपणातेः क्तेः // 803 // .. पृणातिवर्जितादृकारान्ताल्ल्वादिभ्यश्च परस्य क्ानकारो भवति / कृ विक्षेपे करणं कीर्यत इति वा कीर्णि: / गरणं गीर्णि: / लवनं लूनि: / पृणातेस्तु उरोष्ट्योपधस्य च पृ पा लनपूरणयो: पूरणं पूर्तिः / मरणं मूर्तिः / _ 'यावत्' पद के उपपद में रहने पर विन्द और जीव् से णम् प्रत्यय होता है // 799 // यावद् वेदुं भुंक्ते-जितना मिलता है उतना खाता है यह अर्थ है। यावज्जीवं अधीते-जब तक जीता है तब तक पढ़ता है। ___उपमान अर्थवाले कर्ता और कर्म उपपद में होने पर धातु से णम् प्रत्यय होता है // 800 // चूडक इव नष्ट:-चूडकनाशं नष्टः। गुरुः इव अभवत्-गुरुभावं अभवत्। रत्नमिव निहितं-रत्लनिधायं निहितं / निमूल और समूल कर्म उपपद में होने पर कष् धातु से णम् प्रत्यय होता है // 801 // निमलकाषं-निमलं कषति ऐसा अर्थ है। समलका कषति-समलं कषति / अभ्रकाषं कषति / ओदनमिव पक्व: ओदनपाकं पक्वः / इत्यादि प्रयोग से अनुसरण करना चाहिये। - धातु से भाव अर्थ में स्त्रीलिंग में 'क्ति' प्रत्यय होता है // 802 // ____ “घोषवत्योश्च कृतीतिनेट्" इस नियम से इट नहीं होता है। भूयते भवनं वा भूति: / कानुबंध हो गया है। नवनं–नुति: स्तवनं स्तुतिः, वर्धनं वृद्धिः धृति: वृत्ति: यज्-इष्टिः श्रुति: बुध: बुद्धि, कृति: 'पंचमोपधाया धुटि चागुणे' सूत्र से उपधा को दीर्घ होने से भ्रान्ति:।। पृ वर्जित ऋकारान्त और लु आदि से परे क्ति को नकार हो जाता है // 803 // कृ-विक्षेपण करना—करणं कीर्यते इति वा कीणि: 'ऋदन्ते-रगुणे' से इर् होकर 'इरूरो-रीरूरौ' सूत्र से दीर्घ होकर बना है। ऐसे ही गरणं गीर्णि, लवनं लूनि: / पृ-पालन पूरणयो: 'उरोष्ठ्योपधस्य

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