________________ कृदन्त: 361 थान्तानां फान्तानां चानुषङ्गिणां क्त्वा सेट् गुणीभवति वा / श्रन्थ ग्रन्थ सन्दर्भे / श्रन्थित्वा ग्रन्थित्वा / श्रथित्वा ग्रथित्वा / गुफ गुम्फ दृभी ग्रन्थे। गुम्फित्वा / गुफित्वा। जान्तनशामनिटां // 788 // जान्तनशामनिटां चानुषङ्गिणां क्त्वा गुणीभवति वा। षञ्ज सङ्गे। संक्त्वा सक्त्वा। रञ्ज रागे। रक्त्वा / रंक्त्वा / भञ्जो आमद्दने / भ्रंक्त्वा भक्त्वा / ष्वञ्ज परिष्वङ्गे। स्वक्त्वा वक्त्वा / न मस्जिनशोधुटि // 789 // मस्जिनशोः स्वरात्परो नकारागमो भवति धुटि परे। टुमस्जो शुद्धौ। मंक्त्वा मक्त्वा। णश अदर्शन / नंष्ट्वा नष्ट्वा / रुदादिभ्यश्च इड् वा भवति / नशित्वा / इज्जहातेः क्त्वि // 790 // जहातेरिद् भवति क्त्वा प्रत्यये। हित्वा। . समासे भाविन्यनत्रः क्त्वो यप् // 791 // अनत्र: क्त्वान्तेन समासे भाविनि क्त्वाप्रत्ययस्य यपादेशो भवति अभिभूय। अभिभवनं पूर्व पश्चात्किचिदिति / अभिभूय स्थितं / विजित्य प्रस्तुत्य / अधीत्य / उपेत्य। . मीनात्यादिदादीनामाः // 792 // मीनातिमिनोतिदीङ दामागायति पिबति स्थास्यति जहातीनामाकारो भवति यपि परे / मीङ् हिंसायां प्रमाय। डुमिङ् प्रक्षेपणे / परिमाय दीङ् क्षये। दीङ् अनादरे / प्रदाय / दामादीनामां बाधनार्थ / आदाय / निमाय / प्रगाय / प्रपाय / प्रस्थाय अवसाय / विहाय। ___ अंथ् ग्रंथ्–संदर्भ / श्रंथित्वा ग्रंथित्वा, गुण के अभाव में अनुषंग का लोप होता है। श्रथित्वा ग्रथित्वा / गुम्फ गुम्फित्वा, गुफित्वा। जकारान्त नश अनिट् अनुषंग सहित को क्त्वा इट् सहित में गुण विकल्प से होता है // 788 // - सञ्ज–संगे-संक्त्वा सक्त्वा, रञ्ज–रंगना रंक्त्वा रक्त्वा, भञ्ज–भंक्त्वा भक्त्वा स्वास्वक्त्वा स्वक्त्वा। मस्जि नश् को स्वर से परे धुट विभक्ति के आने पर नकार का आगम होता है // 789 // टुमस्जो-शुद्ध होना / मंक्त्वा मक्त्वा 'सकार का संयोगादेलोप:' से लोप होकर ज को ग् क् हो जाता है। णश्–नष्ट होना नंष्ट्वा नष्ट्वा / रुदादि गण से इट् विकल्प से होता है नशित्वा / ... ओहाक् को इत् हो जाता है // 790 // क्त्वा प्रत्यय के आने पर / हित्वा।। न रहित क्त्वा प्रत्ययान्त समास में भविष्यत् अर्थ में 'क्त्वा' को 'यप्' आदेश हो जाता है // 791 // ___अभि-भूत्वा = अभिभूय अभिभवनं पूर्वं पश्चात् किंचिदिति। अभिभूय स्थितं जि–क्त्वा को यप्= विजित्स 'धातोस्तोन्त: पानुबंधे' सूत्र 529 से ह्रस्वान्त से तकार का आगम होता है। प्रस्तुत्य अधीत्य, उपेत्य निकृत्य इत्यादि। मीङ् आदि धातु को यप् प्रत्यय के आने पर आकार हो जाता है // 792 // - “दा मा गायति पिबति” इत्यादि को यप् के आने पर आकार होता है। मीङ्-हिंसा-प्रमाय