Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 412
________________ परिशिष्ट 377 घटयति छादयति तोलयति मूलयति ज्ञपयति चूर्णयति पूजयति घट चलने छद षद संवरणे तुल उन्माने मूल रोहणे ज्ञप मानुबंधे चूर्ण संकोचने पूज पूजायां लुण्ट स्तेये मडि भूषायां हर्षे च . तत्रि कुटुंबधारणे वञ्च प्रलंभने . चर्च अध्ययने . धुषिर् शब्दे भूष अलंकारे मुच् प्रमोचने . पूरी आप्यायने कल गतौ संख्याने च मह पूजायां स्पृह ईप्सायां गवेष मार्गणे मृग अन्वेषणे स्थूल परिबृंहणे अर्थ उपयाञ्चायां मूत्र प्रस्रवणे पार तीर समाप्तौ चित्र विचित्रीकरणे छिद्र कर्णभेदे अन्ध दृष्ट्युपसंहारे दण्ड निपातने सुख दुःख तक्रिययोः रस आस्वादन स्नेहनयोः वर्ण वर्णक्रियाविस्तारगुणवचने पर्ण हरितभावे परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी आत्मनेपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी लुण्टयति मण्डयति तन्त्रयति वञ्चयति चर्चयति घोषयति भूषयति मोचयति पूरयति कलयति महयति स्पृहयति गवेषयति मृगयते स्थूलयति अर्थयति मूत्रयति पारयति तीरयति चित्रयति छिद्रयति अंधयति दण्डयति सुखयति, दुःखयति रसयति वर्णयति पर्णयति

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