Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan
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________________ 376 कातन्त्ररूपमाला भिनत्ति छिनत्ति भिदिर विदारणे छिदिर् द्विधाकरणे पिष्ल संचूर्णन हिंस् हिंसायां पिनष्टि हिनस्ति तनु विस्तारे मनुङ् अवबोधने डुकृञ् करणे तनोति मनुते करोति, कुरुते ड्क्रीब् द्रव्यविनिमये वृञ् संभक्ती गृहञ् उपादाने ज्या वयोहानौ पूज् पवने परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी तनादिगण की धातुयें परस्मैपदी आत्मनेपदी उभयपदी क्रयादिगण की धातुयें परस्मैपदी आत्मनेपदी उभयपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी. उभयपदी परस्मैपदी चुरादिगण की धातुयें परस्मैपदी आत्मनेपदी उभयपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी क्रीणाति वृणीते गृह्णाति, गृह्णीते जीनाति पुनाति लुनाति लूब् छेदने ज्ञा अवबोधने वध संयमने जानाति, जानीते बनाति , चोरयति मन्त्रयते वारयति, वारयते गुण्डयति, सञ्जयति, पालयति अर्चयति क्षालयति चुर स्ते ये मत्रि गुप्तभाषणे वृञ् आवरणे गुड़ि सजि पल रक्षणे अर्च पूजायां क्षल् शौचे कथ वाक्यप्रबन्धे तर्ज भर्त्स संतजने चिति स्मृत्यां पीड गहने मील निमेषणे स्फुट परिहासे लक्ष दर्शनांकनयोः गण परिसंख्याने भक्ष अदने परस्मैपदी कथयति तर्जयति, भर्त्सयति चिन्तयति पीडयति मीलयति परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैगदी परस्मैपदी परस्मैपदी स्फुटयति लक्षयति गणयति भक्षयति
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