Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan
________________ 374 कातन्त्ररूपमाला जुहोत्यादिगण की धातुयें परस्मैपदी आत्मनेपदी आत्मनेपदी उभयपदी उभयपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी हु दानादनयोः ओहाङ् गतौ आङ् माने शब्दे च डुधाञ् डुभृञ् धारणपोषणयोः डुधाञ् डुभृञ् धारणपोषणयोः ओहाक् त्यागे ही लज्जायां ऋ सृ गतौ पृ पालनपूरणयोः णिजिर् शौचपोषणयोः विजिर् पृथक्भावे विषल व्याप्ती बिभी भये जुहोति जिहीते मिमीते दधाति, धत्ते बिभर्ति, बिभृते जहाति जिहेति इयर्ति, ससर्ति पिपर्ति नेनेक्ति वेवेक्ति वेवेष्टि बिभेति परस्मैपदी दीव्यति सूयते संनह्यति, संनते प्रमेद्यति श्यति छ्यत्ति स्यति / परस्मैपदी परस्मैपदी दिवादिगण की धातुयें परस्मैपदी आत्मनेपदी उभयपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी परस्मैपदी आत्मनेपदी परस्मैपदी परस्मैपदी दिवु क्रीडाविजिगीषा घूङ् प्राणिप्रसवे णा बंधने जिमिदा स्नेहने शो तनूकरणे छो छेदने षो अंतकर्मणि दो अवखंडने शम् दम् उपशमे तमु कांक्षायां श्रमु तपसि खेदे च भ्रम अनवस्थाने क्षमूष् सहने क्लमु ग्लानौ मदी हर्षे जनी प्रादुर्भावे व्यध ताड़ने शिष्ल द्यति शाम्यति, दाम्यति ताम्यति श्राम्यति भ्राम्यति क्षाम्यति क्लाम्यति माद्यति जायते विध्यति शिष्यति
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