Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan
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________________ . परिशिष्ट 381 सूत्र 166 286 418 मूत्रिभ्यश्च 424 पृष्ठ सूत्रक्रमांक सूत्र पृष्ठ सूत्रक्रमांक अणऽसुवचिख्यातिलिपिसिचिह्नः 255 267 अणि वचेरोदुपधाया: 255 - 269 अद्यतन्यां च 256 271 अदितुदिनुदिक्षुदिस्विद्यतिविद्यतिविन्दतिविनत्ति अलोपे समानस्य सन्वल्लघुनीनि छिदिभिदिहदिशदिसदिपदिस्कन्दि चण्प रे 263 296 खिदेर्दात् 258 280 असु भुवौ च परस्मै 268 311 अन उस्सिजअस्यैकव्यञ्जनमध्येनादेशादेः भ्यस्तविदादिभ्योऽभुव: 232 परोक्षायां 268 313 अट्युत्तमे वा 269 315 अभ्यस्तस्य च 273 331 अस्यादेः सर्वत्र 274 334 अस्यादेः सर्वत्र 275 339 अश्नोतेश्च 275 340 अस्य च लोप: - 378 अनिटि सनि 290 401 अतोन्तोऽनुस्वारोऽनुनासि अभ्यासाच्च 293 कान्तस्य . 293 415 अतोन्तोऽनुस्वारोऽनुनासिअहँट्यश्नात्यूर्गुसूचिसूत्रि कान्तस्य 293 419 294 422 अयीयें 294 अभ्यस्तस्य चोपधाया नामिन: स्वरे अर्तिहीब्लीरीक्नुयीमाटयादन्तानामन्त: गुणिनि सार्वधातुके 297 435 पो यलोपो गुणश्च नामिनाम् 301 / अनुपसर्गा वा 459 अभूत तद्भावेकृभ्वस्तिषु अर्य: स्वामिवैश्ये 315 519 विकाराच्चिवः . 307 अजयं संगते 315 521 अमावस्या वा 321 557 अच् पचादिभ्यश्च 322 562 अवे हृषोः 572 अर्हश्च . 327 597 असूर्योग्रयोदृशः 331 622 अन्यतोऽपि च 334 636 अपात्क्लेश तमसो: 334 638 अमनुष्यकर्तृकेऽपि च 334 641 अनसि डश्च 336 650 अतो मन् क्वनिप्वनिप्विचः / 337 654 अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते 337 655 अदोऽनन्ने 339 666 अदोमूः 341 674 . अन्यत्रापि च 692 अवर्णादूठो वृद्धिः | 349 723 अकर्तरि च कारके संज्ञायाम् 355 755 अभिविधौ भावे इनण् 356 763 अर्चिशुचिरुचिहुसृपिछादि अलंखल्वोः प्रतिषेधयोः छर्दिभ्य इस् / 358 - 774 क्त्वा वा 359 780 आकारादि सूत्र आभ्योभ्यामेव-मेव स्वरे 29 108 आङ्माभ्यां नित्यम् ___32 123 आमन्त्रणे च 35 132 आमन्त्रणे सि: सम्बुद्धि 36 133 303 343
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