Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 395
________________ 360 कातन्त्ररूपमाला ___एकंकर्तृकयोर्धात्वर्थयोर्मध्ये पूर्वक्रियाकाले वर्तमानाद्धातो: क्त्वा भवति / भुक्त्वा व्रजति / स्नात्वा भुङ्के / गत्वा गृह्णाति। गुणी क्त्वा सेडरुदादिक्षुधक्लिशकुशकुषगृधमृडमृदवदवसग्रहां // 783 // अरुदादिक्षुधादीनां च क्त्वा सेड् गुणी भवति / उदनुबन्धपूक्लिशां क्त्वि // 784 / / उदनुबन्धापूजः क्लिशश्च इड् वा भवति क्त्वाप्रत्यये परे / देवनं पूर्व पश्चात्किचिदिति देवित्वा द्यूत्वा / वृधु / वर्धनं पश्चात्किंचिदिति वर्धित्वा वृध्वा / संस् भंस् अवलंसने / संसित्वा स्रस्त्वा / भ्रंसित्वा / प्रस्त्वा पवित्वा / पूत्वा / क्लेशित्वा। क्लिष्ट्वा।। व्यञ्जनादे[पधस्यावो वा // 785 // उश्च इश्च वी। वी उपधे यस्यासौ व्युपध: व्यञ्जनादेरुकारइकारोपधस्यावकारान्तस्य धातो: क्त्वा सेट गुणी भवति / द्योतित्वा द्युतित्वा। लेखित्वा लिखित्वा। तृषिमृषिकृषिवञ्चिलुच्यतां च // 786 // एषां क्त्वा सेट् गुणी भवति वा / बितृषा पिपासायां / तर्षित्वा तृषित्वा / मृष सहने च / मर्षित्वा मृषित्वा। कृष बिलेखने / कर्षित्वा / कृषित्वा / वञ्च प्रलंभने / वञ्चित्वा / लुच अपनयने / लुञ्चित्वा ऋत इति सौत्रो धातुः / अर्तित्वा ऋतित्वा। थफान्तानां चानुषङ्गिणां // 787 / / __ इसमें कानुबंध होता है। भुज् त्वा 'चवर्गस्य किरलवणे' सूत्र से कवर्ग होकर भुक्त्वा व्रजति खाकर के जाता है। यहाँ खाने और जाने को क्रिया का कर्ता एक है। इसे अधूरी क्रिया भी कहते हैं / स्नात्वा / भुङ्क्ते। रुदादि, क्षुध क्लिश कुश् कुष् गृध मृड मृद वद वस ग्रह धातु को छोड़कर क्त्वा प्रत्यय के आने पर इट् सहित धातु गुणी होती हैं // 783 // उदनुबंध, पू और क्लिश धातु से क्त्वा प्रत्यय के आने पर इट् विकल्प से होता है // 784 // . देवनं पूर्वं पश्चात् किंचित् इति देवित्वा इट् के अभाव में—द्यूत्वा / वृधु-वर्धित्वा वृध्वा, स्रंसित्वा स्रस्त्वा, भ्रंसित्वा भ्रस्त्वा, पवित्वा, पूत्वा क्लेशित्वा क्लिष्ट्वा।। व्यंजनादि धातु, उकार इकार उपधावाली, एवं यकारान्त रहित धातुयें क्त्वा प्रत्यय आने पर इट् सहित विकल्प से गुणी होती हैं // 785 // सूत्र में व्युपधस्य' पद है उसका अर्थ-उश्च इश्च उ और इ को 'वमुवर्ण:' से उ को व होकर इं मिलकर 'वि' द्विवचन में 'वी' बनेगा। वी उपधा में हैं जिसके उसे व्युपधा कहते हैं। जैसे द्युत्, लिख् / द्योतित्वा, लेखित्वा लिखित्वा।। तृप मृष् कृष् वञ्च् लुञ्च् ऋत् धातुयें क्त्वा प्रत्यय में इट् गुणी विकल्प से होती हैं // 786 // बितृषा-प्यास लगना / तर्षित्वा गुण के अभाव में तृषित्वा, मर्षित्वा मृषित्वा, कर्षित्वा कृषित्वा / वञ्चित्वा, लुञ्चित्वा / ऋत धातु सूत्र में है अतित्वा, ऋतित्वा / थकारान्त फकारान्त अनुषंग सहित धातु को क्त्वा के आने पर इट् सहित गुण विकल्प से होता है // 787 //

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