Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 381
________________ 346 कातन्त्ररूपमाला ल्वाधोदनुबन्धाच्च / / 702 // लूञादिभ्य ओदनुबन्धेभ्यश्च परस्य निष्ठातकारस्य नकारो भवति / डीङ् विहायसा गतौ। डीन: डीनवान् / टुओश्वि गतिवृड्योः। म्॥७०३॥ तत्सम्प्रसारणमन्त्यं चेद्दीर्घमापद्यते / शून: शूनवान् / दीप्त: दीप्तवान् / ओलजी ओलस्जी वीडायां / लज्जतेस्म अन्तरङ्गत्वात् चजो: कगौ धुटि चानुबन्धयोरिति जकारस्य गकारः / लग्न: लग्नवान् / धुटि खनिसनिजनाम्॥७०४॥ एषां पञ्चमान्तस्य आकारो भवति धुटि परे। खात: / सातः / जात: / जातवान् / वेट:-गुहू संवरणे / ढे ढलोपो दीर्घश्चोपधाया; / गूढ: गूढवान् / . दादस्य च // 705 // दकारात्परस्य निष्ठातकारस्य दस्यं च नकारो भवति / - आदनुबन्धाश्च // 706 // आकारादनुबन्धाद्धातोनेंड् भवति निष्ठायां जिमिदा स्नेहने / मिन्न: मिन्नवान् / क्लिदू आदींभावे। क्लिक: क्लिनवान्। आतोऽन्तस्थासंयुक्तात्॥७०७॥ अन्तस्थासंयुक्तादाकारात्परस्य निष्ठातकारस्य नकारो भवति / ग्लै / हर्षक्षये। ग्लान: ग्लानवान् / म्लै मात्रविनामे / म्लान: / श्रा पाके / श्राण। द्रा कुत्सायां गतौ / विद्राण: विद्राणवान् / लूब आदि से और ओकारानुबन्ध धातु से परे निष्ठा के तकार को नकार होता है // 702 // डीड्-आकाश में गमन करना। डीयते स्म इति डीन: डीनवान् टुओश्वि-गमन और बढ़ना। दुओ का अनुबन्ध है श्वि त, तवन्त् है। वह यदि संप्रसारण है तो अन्त्य में दीर्घ हो जाता है // 703 // श्वि में उपधा सहित व को उ होकर दीर्घ होकर शून: शूनवान् / दीप्त: दीप्तवान् / ओलजी-लज्जा करना / लज्जते स्म “चजो: कगौ धुटि घानुबंधयो:" 542 सूत्र से जकार को गकार होकर लग्न: लग्नवान् / खन् सन् जन् के पंचम अक्षर को धुट के आने पर आकार हो जाता है // 704 // खात:, खातवान्, सात: सातवान् / जात: जातवान् / गुहू-ढकना 'होढः' 146 सूत्र से ह को द होकर आगे के तवर्ग को ढ होकर “ढे ढलोपो दीर्घश्चोपधाया:" सूत्र 147 से ढकार का लोप होकर पूर्व को दीर्घ होकर गूढ: गूढवान्। दकार से परे निष्ठा के तकार और दकार दोनों को नकार हो जाता है // 705 // आकार अनुबंध धातु से निष्ठा प्रत्यय आने पर इट् नहीं होता है // 706 // जिमिदा-स्नेह करना। मिन्न: मिन्नवान् / क्लिदू-गीला होना-क्लिन्न: क्लिन्नवान् / अन्तस्थ संयुक्त आकार से परे निष्ठा के तकार को नकार हो जाता है // 707 // ग्लै-हर्ष क्षय होना, ग्लान: ग्लानवान् “संध्यक्षर धातु आकारांत हो जाते हैं" म्लै-म्लान होना-म्लान:, श्रा-पकाना श्राणः, द्रा-कुत्सित गमन करना-द्राण: विद्राणवान् इत्यादि।

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