________________ कृदन्त: 333 एषूपपदेषु कृत्र: खो भवति / भयंकरः / ऋतिंकरः / मेघंकरः / क्षेमप्रियमद्रेष्वण्च // 630 // एखूपपदेषु कृत्र: खो भवति अण्च / क्षेमंकर: क्षेमकारः। प्रियंकरः प्रियकार: / मद्रकर: मद्रकारः। 'नाम्नि तृभृवृजिधारितपिदमिसहां संज्ञायाम् // 631 // नाम्युपपदे एभ्य: संज्ञायां खो भवति / रथेन तरतीति रथंतरं सामी विश्वं बिभर्तीति विश्वंभरा भूः / पतिं वृणीते पतिंवरा कन्या। धनं जयतीति धनञ्जयः / वसुं धारयतीति वसुन्धरा / शत्रु तापयतीति शत्रुतपः / अरिं दमयतीति अरिन्दमः / शत्रु सहते इति शत्रुसहः / गमश्च // 632 // नाम्नि उपपदे गमश्च खो भवति संज्ञायां / सुतंगम: / हृदयङ्गमा वाचः / उरोविहायसोरुरविहौ च // 633 // उरोविहायसोरुरविहौ भवत: गमश्च खो भवति संज्ञायां / उरसा गच्छतीति उरङ्गम: / विहायसा गच्छतीति विहङ्गमः। डोऽसंज्ञायामपि // 634 // नाम्नि उपपदे गमेडों भवत्यसंज्ञायामपि / भुजाभ्यां गच्छतीति भुजगः / तुरगः / प्लवगः / पतगः / अध्वगः / दूरग: / पारगः / पन्नगः / सुगः / दुर्ग: / नगः / अगः / उरगः / विहगः / ___ विहङ्गतुरङ्गभुजङ्गाश्च // 635 // भयंकरः, ऋतिंकरः, मेघंकरः। क्षेम प्रिय और मद्र से परे 'कृ' धातु से ख और अण् प्रत्यय होता है // 630 // क्षेमंकरः, क्षेमकारः इत्यादि। नाम उपपद में होने पर तृ भृ वृज धृ तप दम सह धातु से संज्ञा अर्थ में ख प्रत्यय होता है // 631 // .. रथेन तरति—रथंतरं, विश्वं बिभर्ति या सा इति—विश्वंभरा—पृथ्वी, पतिं वृणीते या सा पतिवरा-कन्या, धनं जयतीति धनंजयः, वसुं धारयति-वसुंधरा शत्रु तापयति-शत्रुतप: अरिं दमयति—अरिंदम: शत्रु सहते-शसहः, सर्वं सहते इति सर्वंसह:-मुनिः।। नाम उपपद में होने पर संज्ञा अर्थ में गम धातु से ख प्रत्यय हो जाता है // 632 // सुतंगम: ह्रदयंगमा-वाच:। उरस् विहायस् को उर विह होकर संज्ञा अर्थ में गम धातु से ख प्रत्यय हो जाता है // 633 // उरसा गच्छति-उरंगम: विहायसा गच्छति-विहंगमः / नाम उपपद में होने पर गम धातु से असंज्ञा अर्थ में भी 'ड' प्रत्यय होता है // 634 // भुजाभ्यां गच्छति-भूजग: तुरगः, प्लवग: इत्यादि। डानबंध से अन्त्यस्वर को आदि में करके व्यंजन का लोप हो जाता है अत: गम् के अम् का लोप हो गया है। . विहङ्ग तुरङ्ग और भुजङ्ग शब्द ड प्रत्ययान्त निपात से सिद्ध होते हैं // 635 //