________________ 328 कातन्त्ररूपमाला दण्डसूत्रवर्जिते प्रहरणवाचके उपपदे धृञोऽञ् भवति / वज्रधा: चक्रधरः / अदण्डसूत्रयोरिति किं / दण्डधारः। सूत्रधारः। धनुर्दण्डत्सरुलाङ्गलाङ्कशयष्टितोमरेषु ग्रहेषु // 599 / / ___ एषूपपदेषु ग्रहेरज्वा भवति। धनुर्ग्रह: धनुहिः / दण्डग्रहः / दण्डग्राहः / त्सरुग्रह: त्सरुग्राहः। लाङ्गलग्रहः / लाङ्गलग्राहः / अङ्कशग्रहः अङ्कुशग्राहः / यष्टिग्रहः यष्टिग्राहः / तोमरग्रहः / तोमरग्राहः / स्तम्बकर्णयो रमिजपोः // 600 // स्तम्बकर्णयोरुपपदयोरमिजपिभ्यां अज् भवति / स्तम्बेरमो हस्ती / कर्णेजप: पिशुन: / शंपूर्वेभ्यः संज्ञायाम्॥६०१॥ शंपूर्वेभ्यो धातुभ्य: संज्ञायां अज् भवति / शं करोति इति शंकरः / शंभव: / शंवदः / शीङोऽधिकरणे च // 602 // अधिकरणे च नाम्नि उपपदे शेते अज् भर्श्ववति / खे शेते खशयः / चकारात्- . .. पार्श्वपृष्ठादौ करणे // 603 // पार्श्वपृष्ठादौ करणे उपपदे शीङ: अज् भवति / पावेंन शेते पार्श्वशय: / पृष्ठशय: कुब्जः / चरेष्टः॥६०४॥ अधिकरणे नाम्नि उपपदे चरेष्टो भवति / कुरुषु चरतीति कुरुचरः / एवमटवीचरः। ... वज्रं धरति इति वज्रधारः / चक्रं धरति इति चक्रधरः / दण्ड सूत्र वर्णित ऐसा क्यों कहा ? दण्डधारः सूत्रधारः / इसमें 584 सूत्र से अण् प्रत्यय हुआ है। वृद्धि हुई। धनुष, दण्ड त्सरु, लाङ्गल, अंकुश, यष्टि और तोमर के उपपद में होने पर ग्रह धातु से अच् प्रत्यय विकल्प से होता है // 599 // / धनुर्गृह्णाति इति धनुर्ग्रह: पक्ष में 'कर्मण्यण' सूत्र 584 से अण् होकर धनुहिः / दण्डग्रहः दण्डग्राह: त्सरुग्रह: त्सरुग्राह: आदि। स्तंब और कर्ण उपपद में होने पर रम् जप् धातु से अच् प्रत्यय होता है // 600 // स्तंबं रमते इति = स्तंबेरम:-हस्ती, कणे जपतीति = कर्णेजप:-पिशुनः / शं पूर्वक कृ धातु से संज्ञा अर्थ में यच् होता है // 601 // शं करोति इति = शंकरः / शंवदः / शंभवः / अधिकरण और नाम उपपद में होने पर शीङ् धातु से अच् होता है // 602 // खे शेते-आकाश में सोता है। खशय: / चकार सेपार्श्व पृष्ठ आदि करण उपपद में होने पर शीङ् से अच् होता है // 603 // पावेन शेते—पार्श्वशयः। पष्ठशयः = कब्जः। अधिकरण नाम उपपद में होने पर चर से 'ट' प्रत्यय होता है // 604 // कुरुषु चरतीति = कुरुचरः / अटवीचरः / स्त्रीलिङ्ग में कुरुचरी अटवीचरी बनता है।