________________ तिङन्तः 197 द्यादीनि क्रियातिपत्तिः // 11 // स्यत् स्यतां स्यन्, स्यस् स्यतं स्यत, स्यं स्याव स्याम, स्यत स्येतां स्यन्त, स्यथास् स्येथां स्यध्वं, स्ये स्यावहि स्यामहि-स्येन सहितानि द्यादीनि क्रियातिपत्तिसंज्ञानि भवन्ति / षडाद्याः सार्वधातुकम्॥ 12 // षण्णां विभक्तीनां आद्याश्चतस्रो विभक्तय: सार्वधातुकसंज्ञा भवन्ति / अथ परस्मैपदानि // 13 // * सर्वविभक्तीनां आदौ नववचनानि परस्मैपदसंज्ञानि भवन्ति / उत्तरत्र नवग्रहणात्परग्रहणाच्चेह पूर्वा नवेति अवगन्तव्यं / ति तस् अन्ति। सि थस् थ / मि वस् मस् / एवं सर्वविभक्तिषु / नव पराण्यात्मने // 14 // सर्वविभक्तीनां पराणि नववचनानि आत्मनेपदसंज्ञानि भवन्ति / ते आते अन्ते / से आथे ध्वे / ए वहे महे / एवं सर्वविभक्तिषु। - त्रीणि त्रीणि प्रथममध्यमोत्तमाः॥ 15 // परस्मैपदानामात्मनेपदानां च त्रीणि त्रीणि वचनानि प्रथममध्यमोत्तमपुरुषसंज्ञानि भवन्ति / ति तस् स्यति स्यतस् स्यन्ति, स्यसि स्यथस् स्यथ, स्यामि स्यावस् स्यामस् / स्यते स्येते स्यन्ते, स्यसे स्येथे स्यध्वे, स्ये स्यावहे स्यामहे / स्य सहित ति आदि अठारह विभक्तियाँ भविष्यत् संज्ञक होती हैं (यह ‘लुट्' हैं) ___'स्य' सहित 'दि' आदि विभक्तियाँ 'क्रियातिपत्ति' होती हैं // 11 // दि आदि विभक्तियाँ ह्यस्तनी में हैं उन्हीं में पूर्व में 'ष्य' जोड़ देने से क्रियातिपत्ति में बन जाती हैं। स्यत् स्यता स्यन्, स्यस् स्यतं स्यत, स्यं स्याव स्याम / स्यत स्येतां स्यन्त, स्यथास् स्येथां स्यध्वं, स्ये स्यावहि स्यामहि / ये अठारह विभक्तियाँ क्रियातिपत्ति संज्ञक हैं (इसे 'लुङ्' कहते हैं) - पूर्व की चार विभक्तियाँ 'सार्वधातुक' हैं // 12 // - छह विभक्तियों के आदि की चार विभक्तियाँ सार्वधातुक संज्ञक हैं। उनके नाम-वर्तमाना, सप्तमी, .पञ्चमी हस्तनी ये चार हैं। * आदि के नव नव वचन परस्मैपद संज्ञक होते हैं // 13 // सभी विभक्तियों में आदि के नव-नव वचन परस्मैपद संज्ञक होते हैं। अगले सूत्र में 'नव' शब्द और 'पर' शब्द का ग्रहण है अत: यहाँ 'पूर्व की नव' ऐसा समझ लेना चाहिये / जैसे—ति तस अंति, सि, थस थ मि वस मस। ऐसे ही सभी विभक्तियों में समझ लेना। __ आगे की नव 'आत्मनेपद' संज्ञक हैं // 14 // सभी विभक्तियों में अगली-अगली नव विभक्तियाँ 'आत्मनेपद' संज्ञक हैं। जैसे—ते आते अन्ते, से आथे ध्वे, ए वहे महे / ऐसे ही सभी विभक्तियों में समझना चाहिये। तीन-तीन वचन प्रथम, मध्यम, उत्तम होते हैं // 15 // परस्मैपद और आत्मनेपद की विभक्तियों में तीन-तीन वचन प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष, उत्तम पुरुष संज्ञक होते हैं। जैसे—ति तस् अन्ति ये प्रथम पुरुष हैं। सि थस् थ ये मध्यम पुरुष हैं। मि वस् मस् ये उत्तम पुरुष संज्ञक हैं। ते आते अन्ते ये प्रथम पुरुष हैं। ये आथे ध्वे ये मध्यम हैं। ऐ वहे महे ये उत्तम पुरुष हैं।