________________ 224 कातन्त्ररूपमाला सौ वा॥१२८॥ सस्य तो भवति वा हस्तन्यां सौ परे। अशात् अशा: अशिष्टं अशिष्ट / अशासं। अशिष्व / अशिष्म। शिष्यते। दीधीङ् दीप्तिदेवनयोः वेवीङ् वेतनातुल्ये। आदीधीते। य इवर्णस्यासंयोगपूर्वस्यानेकाक्षरस्य इति यः / आदीध्याते आदीध्यते। दीधीवेव्योरिवर्णयकारयोः // 129 // दीधीवेव्योरन्तस्य लोपो भवति इवर्णयकारयोः परतः। आदीधीत आदीध्यातां आदीधीरन् / आदीधीतां आदीध्यातां आदीध्यतां / आदीधीष्व आदीध्याथा आदीधीध्वं / दीधीवेव्योश्च // 130 // अनयोः पञ्चम्युत्तमे च गुणो न भवति / आदीध्यै आदीध्यावहै आदीध्यामहै / आदीधीत आदीध्यातां आदीध्यत / आदीध्यते / वेवीते वेव्याते वेव्यते / वेवीत वेवीयातां वेवीरन् / वेवीतां वेव्यातां वेव्यतां / वेवीष्व वेव्याथां वेवीध्वं / वेव्यै वेव्यावहै वेव्यामहै / अवेवीत अवेव्यातां अवेव्यत / अवेवीथा: अवेव्याथां अवेवीवं / अवेवि अवेवीवहि अवेवीमहि / वेव्यते / ईड् स्तुतौ / ईट्टे ईडाते / ईडते। . ईड्जनोः स्वे च // 131 // ईड्जनो: स्ध्वे च सार्वधातु के परे इड् भवति / ईडिषे ईडाथे ईडिध्वे / ईडे ईड्वहे ईड्महे / ईडीत ईडीयातां ईडीरन् / ईट्टा ईडातां ईडतां / ऐट्ट ऐडातां ऐडत / ईड्यते / इत्यादि / णु स्तुतौ।। ह्यस्तनी की सि के आने पर स् को त् विकल्प से होता है // 128 // अशात् / विसर्ग होकर 'अशा:' बना। भाव कर्म में शिष्यते / दीघीङ् धातु दीप्ति और क्रीडा अर्थ में है। वेवीङ् वेतन और अतुल्य अर्थ में है / आङ् पूर्वक दीधी धातु है / आदीधी ते = आदीधीते / आदीधी आते हैं “य इवर्ण स्यासंयोग पूर्वस्यानेकाक्षरस्य” १७०वें सूत्र से इवर्ण को य् होकर 'आदीध्याते' अन्ते में नकार का लोप होकर आदीध्यते बना। सप्तमी में-आदीधी ईत है। इवर्ण और यकार के आने पर दीधी वेवी के अंत का लोप हो जाता है // 129 // आदीधीत, आदीधीयातां / पंचमी में आदीधीतां आदीध्याता, आदीध्यतां / पंचमी के उत्तम पुरुष में दीधी और वेवी के पंचमी के उत्तम पुरुष में गुण नहीं होता है // 130 // अत: आदीधी + ऐ= आदीध्यै, आदीध्यावहै / आदीध्यामहै। . ह्यस्तनी में-अदीधीत में आङ् उपसर्ग लगकर आदीधीत बना। भावकर्म में आदीध्यते // ऐसे ही 'वेवीते' वेव्याते वेव्यते / वेवीत / वेवीतां / अवेवीत् / भावकर्म में वेव्यते / ईड् धातु स्तुति अर्थ में है। ईट् ते है 'तवर्गस्य षटवर्गादृवर्ग:' सूत्र से टवर्ग होकर 'ईट्टे' बना। ईडाते, इडते। ईट् से, ईट् ध्वे। से ध्वे सार्वधातुक के आने पर ईट् और जन् धातु से इट् का आगम हो जाता है // 131 // ईडिषे, ईडाथे, ईडिध्वे / ईडीत / ईट्टां। ऐट्ट ऐडातां / भाव कर्म में ईड्यते / इत्यादि / णु धातु स्तुति अर्थ में है। ‘णो न:' ५५वें सूत्र से धातु की आदि का णकार 'न' हो जाता है अत: 'नु ति' है।