________________ तिङन्त: 229 धातोरवयवस्यानभ्यासस्य एकस्वरस्याद्यस्य वर्णस्य द्विवचनं भवति / इति वर्तते / जुहोत्यादीनां सार्वधातुके // 150 / / जुहोत्यादीनां द्विवचनं भवति सार्वधातुके परे। पूर्वोऽभ्यासः // 151 // द्विरुक्तस्य धातोः पूर्वोऽवयवोऽभ्याससंज्ञो भवति / हो जः // 152 // अभ्यासहकारस्य जकारो भवति / जुहोति जुहुत: / द्वयमभ्यस्तम्॥१५३ // धातोरभ्यास इतरश्चेति द्वयमभ्यस्तसंज्ञं भवति / ___ लोपोऽभ्यस्तादन्तिनः // 154 // अभ्यस्तात्परस्यान्तेर्नकारस्य लोपो भवति।। जुहोतेः सार्वधातुके / / 155 // . जुहोते: उकारस्य वकारो भवति स्वरादावगुणे सार्वधातुके परे / जुह्वति / जुहोषि जुहुथ: जुहुथ / जुहोमि जुहुव: जुहुमः // इत्यादि / ओहाङ् गतौ / भृङ्हाङ्माङामित्॥१५६ // भृञ् हाङ् माङ् इत्येतेषामभ्यासस्य इद्भवति सार्वधातुके परे / उभयेषामीकारो व्यञ्जनादावदः // 157 // उभयेषामभ्यस्तक्रयादिविकरणानां दावर्जितानामाकारस्य ईकारो भवति व्यञ्जनादावगुणे सार्वधातुके परे / जिहीते। यह सूत्र अनुवृत्ति में चला आ रहा है। __- सार्वधातुक के आने पर जुहोति आदि को द्वित्व हो जाता है // 150 // 'हु हु ति' द्वित्व किये गये धातु के पूर्व अवयव की अभ्यास संज्ञा हो जाती है // 151 // अभ्यास के हकार को 'जकार' हो जाता है // 152 // जुहोति, जुहुत: / जु हु अन्ति। धातु के अभ्यास और इतर दोनों को 'अभ्यस्त' संज्ञा हो जाती है // 153 // अभ्यस्त से परे अन्ति के नकार का लोप हो जाता है // 154 // स्वरादि अगुण सार्वधातुक के आने पर जुहोति के उकार को 'व' हो जाता है // 156 // जुह्वति बना / इत्यादि / ओहाङ् गति अर्थ में है। 'हा हा ते' है पूर्व को अभ्यास संज्ञा हो गई। सार्वधातुक में भृञ् हाङ् माङ् इनके अभ्यास को इकार हो जाता है // 156 // व्यंजनादि अगुण सार्वधातुक के आने पर दोनों ही अभ्यस्त बने हुए हैं जहाँ पर ऐसे दा वर्जित आकार को 'ईकार' हो जाता है // 157 // भृङ्हाङ्माङमित् 156 सूत्र से अभ्यास को इकार होकर 'हो ज:' सूत्र से जकार होकर जिहीते।