________________ 304 कातन्त्ररूपमाला ___ यम: अपरिवेषणेऽर्थे ह्रस्वो भवति इनि परे। यम उपरमे। नियमयति / अपरिवेषण इति किं आयामयति / आयीयमत्। - स्खदिरवपरिभ्यां च // 465 // स्खदिरवपरिभ्यां च ह्रस्वो भवति इनि परे / स्खदिष् स्खदने / अवस्खदयति / अन्योपसर्गान्न भवति / उपस्खादयति / अवचिस्खदत् / पर्यचिस्खदत् / उपाचिस्खदत् / पण गतौ // 466 // पणो गत्यर्थे ह्रस्वो भवति इनि परे // पणयति // अगत्यर्थ इति किं ? पाणयति / अपीपणत् / इति इन्नन्ताः // . आत्मेच्छायां यिन् // 467 // नाम्नो यिन्भवति आत्मेच्छायां। यिन्यवर्णस्य // 468 // अवर्णस्य इत्वं भवति यिनि परे // पुत्रमिच्छत्यात्मन: पुत्रीयति // पुत्रीयेत् / पुत्रीयतु / अपुत्रीयत् / अपुत्रीयीत् // पुत्रीयाञ्चकार / पुत्रीयिता। पुत्रीय्यात् / पुत्रीयिष्यति। अपुत्रीयिषीत् / एवं घटीयति / वस्त्रीयति / सुवर्णीयति। .. काम्य च // 469 // नाम्न: काम्यो भवति आत्मेच्छायां। पुत्रमिच्छत्यात्मन: पुत्रकाम्यति / पुत्रकाम्येत् / पुत्रकाम्यतु / अपुत्रकाम्यत् / अपुत्रकाम्यीत् / पुत्रकाम्याञ्चकार। पुत्रकाम्यिता। पुत्रकाम्यात्। पुत्रकाम्यिष्यति / अपुत्रकाम्यिष्यत् / एवं इदंकाम्यति। नियमयति / अपरिवेषण ऐसा क्यों कहा ? आयामयति आयीयमत्। ' इन् के आने पर अव, परि उपसर्ग पूर्वक स्खदिष् धातु ह्रस्व हो जाता है // 465 // अवस्खदयति / अन्य उपसर्ग से ह्रस्व नहीं होगा। यथा-उपस्खादयति / इन् के आने पर पण गत्यर्थ में ह्रस्व होता है // 466 // पणयति / गत्यर्थ ऐसा क्यों कहा ? पाणयति। . इस प्रकार से कारित संज्ञक इन प्रत्ययान्त प्रकरण समाप्त हुआ। अथ नाम धातु प्रकरण आत्म इच्छा में नाम से यिन् प्रत्यय होता है // 467 // यिन् के आने पर अवर्ण को ईकार होता है // 468 // पुत्रमिच्छत्यात्मन: / अपने लिये पुत्र चाहता है। पुत्र य् ति अवर्ण को ई होकर 'पुत्रीय' रहा 'ते धातवः' से धातु संज्ञा होकर अन् विकरण और पुत्रीयति। पुत्रीयेत् / पुत्रीयतु। अपुत्रीयत्। अपुत्रीयीत्। पुत्रीयाञ्चकार पुत्रीयिता। पुत्रीय्यात् / पुत्रीयिष्यति / अपुत्रीयिष्यत् / घट इच्छति आत्मन: / घटीयति / वस्त्रीयति सुवर्णीयति। आत्म इच्छा अर्थ में नाम से 'काम्य' प्रत्यय हो जाता है // 469 // पुत्रकाम्य ते धातवः' से धातु संज्ञा होकर पुत्रकाम्यति इत्यादि / इदंकाम्यति आत्मनः / इदंकाम्यति /