________________ कृदन्त: 323 वा स्वरे // 566 // गिरते रेफस्य वा लकारो भवति स्वरे परे / उद्गिरः उद्गिल: प्रज्ञः / __उपसर्गे चातो ङः // 567 // उपसर्गे तु आकारान्ताड्डो भवति / सुग्ल: / सुम्ल: / प्रस्थ: / प्रह्वः / छो छेदने / प्रच्छः / धेदशिपाघ्राध्मः शः / / 568 // उपसर्गे उपपदे एभ्य: शो भवति / उद्धयः / उत्पश्य: / उत्पिब: / उज्जिघ्रः / उद्धमः / साहिसातिवेद्युदेजिचेतिधारिपारिलिम्पिविदां त्वनुपसर्गे // 569 // एषामनुपसर्ग शो भवति / साहयतीति साहयः / एवं सातयः / वेदयः / एज़ कम्पने / उदेजयः / चिती संज्ञाने / चेतयः / धृङ् धारणे धारयः / पार तीर कर्मसमाप्तौ / पारयः / लिम्पः / विन्दः / __वा ज्वलादिदुनीभुवो णः // 570 // ज्वलादिभ्यो दुनोते: नयतेर्भवतेश्च अनुपसर्गे णो भवति वा पक्षे अच् / ज्वल दीप्तौ / ज्वल: ज्वाल: / चल कम्पने / चल: चाल: / कसपर्यन्तो ज्वलादिः / टुदु उपतापे। दव: दाव: / नय: नाय: / भव: भावः / स्वर प्रत्यय के आने पर गृ के रकार को विकल्प से लकार हो जाता है // 566 // उद्गिरः, उद्गिलः / ज्ञा कानुबन्धं से अन्तिम स्वर का लोप होकर प्रज्ञ: बना। उपसर्ग सहित आकारान्त धातु से 'ड' प्रत्यय होता है // 567 // सु उपसर्ग पूर्वक ग्ला म्ला हैं 'डानुबन्धेऽन्त्यस्वरादेर्लोप:' 510 सूत्र से डानुबन्ध में अन्त्य स्वर का लोप होकर सुग्ल: सुम्ल: सुस्थ: प्रस्थ: ह्णा से प्रतः बना। . उपसर्ग उपपद सहित धेट् दृश् पा घ्रा और ध्या धातु से 'श' प्रत्यय होता है // 568 // शित् होने से पश्य पिब आदि आदेश होते हैं उत् धे अ= उद्धयः / उत्पश्य: उत्पिब: उज्जिघ: उद्धम: इनमें 'दृशे: पश्य:' 69, 'प: पिब' 63, 'घो जिघ्रः' 64, ‘ध्मो धम:' 65 इन सूत्रों से क्रम से दृश् .को पश्य, पा को पिब, घ्रा को जिघ्र और ध्मा को धम आदेश होता है। साहिं साति वेदि उत्पूर्वक एजृ धृङ् पार लिप विद धातु से उपसर्ग के अभाव में 'श' प्रत्यय होता है // 569 // ___ शानुबन्ध से सार्वधातुकवत् कार्य होता है। साहयतीति साह्य: चुरादिगण से इन् होकर अन् होकर बना है। ऐसे ही सातय: वेदय: बने हैं / एज़-कम्पना उत्पूर्वक उद्वेजय: चिती-समझना चेतय: चुरादिगण से बना है। धृङ्-धारण करना धारय: पार तीर-कार्य समाप्त होना पारय: तारय: / लिम्प: विन्द: इन दो में तुदादि गण में 'मुचादेरागमो नकार: स्वरादनि विकरणे' 197 सूत्र से नकार का आगम होकर अन् विकरण होकर रूप बना है। ज्वलादि से दु, नी, भू धातु से विकल्प से अण् प्रत्यय होता है // 570 // इन धातु से उपसर्ग रहित में अण् या अच् प्रत्यय होता है। ज्वल-दीप्त होना, ज्वल: ज्वाल: चल-कम्पना चल: चाल:, कस पर्यन्त ज्वलादि धातु हैं / टुदु-उपताप देना दव: दाव:, नय: नाय:, भव: भावः।