________________ कृदन्त: 321 चित्याग्निचित्ये च // 556 // एतावग्नावर्थे निपात्येते। चयनं चित्यं / अग्नेश्चयनमग्निचित्या। ___ अमावास्या वा॥५५७॥ अमा—सहार्थे अमापूर्वाद्वसतेय॑ण् भवति कालाधिकरणे वा दीर्घत्वं निपात्यते। अमा सह वसतश्चन्द्रार्को यस्यां तिथौ सा तिथि: अमावस्या। अमावास्या। यल्लक्षणेनानुपपन्नं तत्सर्वं निपातनात्सिद्ध। वुण्तृचौ // 558 // धातोर्तुण्तृचौ भवतः। युवुलामनाकान्ताः // 559 // युवुलां स्थाने यथासंख्यं अन अक अन्त इत्येते भवन्ति / भवतीति भावक: भविता / कारक: कर्ता। नायक: नेता / हारक: हर्ता / बुभूषकः / अस्य च लोप: बुभूषिता / गुणश्चेक्रीयिते / बोभूयकः / बोभूयिता। भावकः / भावयिता। पुत्रीयिकः / पुत्रीयिता। हन्तेस्तः // 560 // अग्नि अर्थ में चित्य अग्निचित्या निपात से बनते हैं // 556 // चयनं = चित्यं, अग्नेश्चयनं = अग्निचित्या। अमापूर्वक वस् धातु से कालाधिकरण में घ्यण् प्रत्यय होता है // 557 // और विकल्प से दीर्घता हो जाती है। अमा-साथ। अमा-सह चन्द्रार्की यस्यां तिथौ वसत: सा तिथि:-साथ है चन्द्र और सूर्य जिस तिथि में वह तिथि ‘अमावस्या:' अमावास्या: / व्याकरण सूत्र से जो नहीं बनते हैं वे सब निपात सिद्ध कहलाते हैं। धातु से वुण तृच् प्रत्यय होता है // 558 // - यु वु और अल् को क्रम से अन अक और अन्त आदेश होते हैं // 559 // - यहाँ वु को अक हुआ है भू–से वुण हुआ था अत: णानुबंध से वृद्धि होकर भावक: बना तृच् से भू-तृ 'अन् विकरण: कर्तरि' 22 सूत्र से अन् होकर 'अनि च विकरणे' 23 सूत्र से गुण होकर इट् होकर भवित बना। 'कृत्तद्धितसमासाश्च' सत्र से कदन्त संज्ञा होकर सि विभक्ति आकर भविता बना। कृ-से कारक: कर्ता, नी–नायकः, नेता। सन्नन्त में भू भू स् पूर्व को ह्रस्व और तृतीय अक्षर होकर वुभूषकः, अकार का लोप होकर इट होकर बुभूषिता बना। . 'धातोर्वा तुमन्तादिच्छति नैककर्तृकात्' 380 सूत्र से सन् होकर 'चण् परोक्षा चेक्रीयितसन्नन्तेषु' 292 सूत्र से द्वित्व होकर 'द्वितीय-चतुर्थयो: प्रथमतृतीयौ' सूत्र 159 से चतुर्थ को तृतीय होकर ह्रस्व होकर बना है। चेक्रीयित में 'गुणश्चक्रीयते' 410 सूत्र से गुण होता है, अत: बोभूयक: बोभूयिता / कारित संज्ञक इन् से परे भावक; भावयिता / नामधातु से पुत्रीयकः पुत्रीयिता। बकार णकारानुबन्ध प्रत्यय के आने पर हन् के नकार को तकार होता है // 560 //