Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 335
________________ 300 कातन्त्ररूपमाला न स्वरादेः // 445 // स्वरादेघों न भवति इन् चण् परे / आतिथपत् / वेदापयति / अविवेदपत् / रशब्द ऋतो लघोळञ्जनादेः // 446 // व्यञ्जनादेरनेकाक्षरस्य लिङ्गस्य लघो: ऋतो रशब्दादेशो भवति इनि परे / पृथ प्रख्याने / पृथु करोति प्रथयति / अपिप्रथत् / मृदुं करोति म्रदयति / अमिम्रदत् / दृढं करोति द्रढयति / अदिद्रढत् / कृशं करोति क्रशयति / अचिक्रशत् / भृशं करोति भ्रशयति अबिभ्रशत् / परिवृढं करोति परिवढयति पर्यविव्रढत्। इत्यादि। पृथु मृदुं दृढं चैव कृशं च भृशमेव च। परिपूर्व वृढं चैव षडेतान्नविधौ स्मरेत् // 1 // धातोश्च हेतौ // 447 // हेतुकर्तृकव्यापारे वर्तमानाद्धातोः कारितसंज्ञक इन् भवति। उवर्णस्य जान्तस्यापवर्गपरस्यावणे इत्यभ्यसावर्णस्य इकारः // दी? लघोरस्वरादीनामिति दीर्घः। भवति कश्चित्तमन्य: प्रयुक्ते भावयति भावयते। भावयेत्। भावयतु। अभावयत्। इन्व्यञ्जनादेरुभयमित्युक्तत्वात् सर्वेषामिन्प्रत्ययानामभयपदित्वम् // अबीभवत्। भावयाञ्चक्रे। भावयिता। भाव्यात्। भावयिषीष्ट / भावयिष्यति। भावयिष्यते। अभावयिष्यत् अभावयिष्यत / पाचयति / अपीपचत् / एधयति ऐदिधत्। नन्दयति / अननन्दत् / स्रंसयति असस्रंसत्।। इन् और चण् के आने पर स्वर की आदि को दीर्घ नहीं होता है // 445 // आतिथपत् / अविवेदपत्। इन् के आने पर व्यञ्जनादि अनेकाक्षर लघु लिंग के ऋ को रकार हो जाता है // 446 // पृथ–प्रख्यान करना। पृथु करोति = प्रथयति, ऋ को र हुआ है अपिप्रथत् / मृदुं करोति = मृदयति / अभिप्रदत् / दृढं करोति = द्रढयति / अदिद्रढत् / कृशं करोति = क्रशयति / अचिक्रशत् / भृशं करोति = भ्रशयति, अबिभ्रशत् / परिवृढं करोति = परिवढयति / पर्यविवढत् / इत्यादि। श्लोकार्थ-पृथु, मृदु, दृढ, कृश, भृश और परिवृढ ये छह हैं जिनके क्र को र् होता है // 1 // अथ प्रेरणार्थक धातु का प्रकरण हेतु कर्तक व्यापार में वर्तमान धातु से कारित संज्ञक ‘इन्' प्रत्यय होता है // 447 // कोई होता है और अन्य कोई उसको प्रेरणा देता है। इस अर्थ में कारित संज्ञक 'इन्' होता है और हुआता है। 'दीघों लघोरस्वरादीनां' 222 सूत्र से वृद्धि होकर भौ इ है 'औ आव्' से 'भावि' बना 'ते धातवः' से धातु संज्ञा होकर अन् विकरण और गुण करके भावयति बना 'इन्यजादेरुभयम्' सूत्र 37 से इन्नंत धातु उभयपदी होती हैं अत: भावयते / ऐसे ही दसों लकारों में देखिये। भावयति, भावयते। भावयेत्, भावयेत / भावयतु, भावयतां / अभावयत्, अभावयत / सूत्र 295 से दीर्घ हुआ। अबीभवत् / भावयाञ्चकार भावयाञ्चक्रे / भावयिता। भाव्यात्, भावयिषीष्ट / भावयिष्यति, भावयिष्यते / अभावयिष्यत, अभावयिष्यत। पच-पाचयति-पकवाता है। पाचयति / अपीपचत् / एधयति / ऐदिधत् / नन्दयति / अननन्दत् / स्रंसयति / असत्रंसत्।

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