________________ तिङन्त: 299 न रात्॥४४०॥ रेफात्परः संयोगान्तो लोप्यो न भवति। अजरिघट्ट अजघर्ट्स अजरीघ / अजरिगृढं अजगुढं अजरीगृढं / अजरिगृढ अजगूढ अजरीगृढ। अजरीगृहं अजहं अजरिगृहं / अजगुह्व अजरिगृह्ण अजरीगृह / अजगर्गृह्म अजरीगृह्म अजरिगृह्य। इति चेक्रीयितलुगन्ताः। इन्कारितं धात्वर्थे // 441 // नाम्न: कारितसंज्ञक इन्भवति धात्वर्थे / इनि लिङ्गस्यानेकाक्षरस्यान्तस्य स्वरादेर्लोपः // 442 // अनेकाक्षरस्य लिङ्गस्य अन्त्यस्वरादेलोंपो भवति इनि परे // इस्तिनाऽतिक्रामति अतिहस्तयति / हलिं गृह्णाति। न हलिकल्योः // 443 // हलिकल्योवृद्धिर्न भवति / हलयति / कलयति / अजहलत् / अचकलत् / कृतयति / अचकृतत् / वस्त्रं समाच्छादयति / संवस्त्रयति / समवस्त्रत् / वर्मणा सन्नाति संवर्मयति / समवर्मत् / तत्करोति तदाचष्टे इति इन् / मुण्डं करोति मुण्डयति / अमुमुण्डत् / एवं मिश्रयति / अमिमिश्रत् / सूत्रमाचष्टे सूत्रयति / असुसूत्रत् / सत्यार्थवेदानामन्त आप कारिते॥४४४॥ सत्यार्थवेदानामन्त आप् भवति कारिते परे / सत्यमाचष्टे सत्यापयति / एवं अर्थापयति। , रेफ से परे संयोगान्त का लोप नहीं होता है // 440 // अजरिघ, अजघ, अजरीघट्ट में ट् का संयोगान्त लोप नहीं हुआ। इत्यादि / इस प्रकार से चेक्रीयित लुगन्त प्रकरण समाप्त हुआ। धातु अर्थ में नाम से कारित संज्ञक इन् प्रत्यय होता है // 441 // इन् के आने पर अनेकाक्षर वाले लिंग के अन्त्य स्वर को आदि करके लोप होता है // 442 // हस्तिना अतिक्रामति–हाथी के द्वारा उल्लंघन करता है। . अति हस्तिन् इन् हस्त्-हस्ति अतिहस्ति ‘ते धातव:' से धातु संज्ञा होकर अन् विकरण और गुण होकर अतिहस्तयति बना। हलिं गृह्णाति। . हलि और कलि में वृद्धि नहीं होती है // 443 // . हलयति कलयति / अजहलत् अचकलत् / अद्यतनी के रूप का एक नमूना दिखा दिया है बाकी दशों लकार पूर्वोक्त प्रकार समझ लेना। कृतिं गृह्णाति = कृतयति / अचकृतत् / वस्त्रं समाच्छादयति संवस्त्रयति / समवस्त्रत् / कर्मणा संनह्यति = संवर्मयति / समवर्यत् / “तत्करोति तदाचष्टे इन्” इस नियम से मुण्डं करोति = मुण्डयति। अमुमुण्डत्। मिश्रं करोति = मिश्रयति। अमिमिश्रत् / सूत्रमाचष्टे = सूत्रयति / असुसूत्रत्। कारित प्रत्यय के आने पर सत्य, अर्थ और वेद के अंत में 'आप' हो जाता है // 444 // . सत्यमाचष्टे = सत्यापयति / अर्थमाचष्टे = अर्थापयति / वेदमाचष्टे = वेदापयति /