________________ तिङन्त: 287 उवर्णान्ताद्धातोर्नेड् भवति सनि परे / भवितुमिच्छति बुभूषति / एदिधिषते / पिपक्षति / पिपक्षते / निनन्दिषति / सिस्रंसिषते / बिभ्रंशिषते / दिध्वंसिषते / विवासति / विवासते / विव्यासति / विव्यासते। जेर्गिः सन्परोक्षयोः // 382 // जयतेर्गिर्भवति सन्परोक्षयोः परत:।। स्वरान्तानां सनि // 383 // स्वरान्तानां धातूनां दी? भवति सनि परे / नाम्यन्तानामनिटाम्॥३८४॥ नाम्यन्तानां धातुनामनिटां सनि गुणो न भवति / विजिगीषते / परोक्षायां / जिगाय जिग्यतुः जिग्युः / विजिग्ये विजिग्याते विजिग्यिरे // चिचीषति / निनीषति / तुष्टूपति / अदेर्घस्लु सनद्यतन्योः। वसतिघसेः सात्॥३८५ // आभ्यां परमसार्वधातुकमनिड् भवति / ___सस्य सेऽसार्वधातुके तः॥३८६ // सस्य तकारो भवति असार्वधातुके सकारे परे / जिघत्सति / वस निवासे / विवत्सति / शिशयिषते / विवक्षति / विवक्षते / जुहूषति / जिहासते। सनि मिमीमादारभलभशकपतपदामिस् स्वरस्य / / 387 // भवितुं इच्छति—होना चाहता है। यहाँ भवितुं क्रिया और इच्छति क्रिया का कर्ता एक है अत: सन् प्रत्यय आने से ‘चण् परोक्षाचेक्रीयितसन्नतेषु' से द्वित्व होकर 'पूर्वोऽभ्यास:' से पूर्व को अभ्यास हुआ, ह्रस्व हुआ और तृतीय अक्षर होकर बुभूषति अब इसके रूप भवति के समान दशों लकारों में चल जायेंगे। एधितम् इच्छति = एदिधिषते। पत्तम इच्छति = पिपक्षति। पिपक्षते। नन्दितम इच्छति = निनन्दिषति / स्रंसितुम इच्छति = सिलसिषते। बिभ्रंसिषते। दिध्वंसिषते। वातुमिच्छति विवासति / विवासते / वायितुमिच्छति / विव्यासति / विव्यासते / विजेतुम् इच्छति = विजि जि स ति। . सन् और परोक्षा में जि को गि हो जाता है // 382 // सन् के आने पर स्वरांत धातु को दीर्घ होता है // 383 // नाम्यन्त अनिट् धातु को सन् के आने पर गुण नहीं होता है // 384 // विजिगीषते / परोक्षा में जिगाय जिग्यतुः जिग्युः / विजिग्ये / चेतुम् इच्छति = चिचीषति 383 सूत्र से दीर्घ हुआ है। नेतुम् इच्छति = निनीषति / स्तोतुम् इच्छति = तुष्टूपति / अद् को 262 सूत्र से घस्ल आदेश होकर। ___ वस और घस् से असार्वधातुक में इट् नहीं होता है // 385 // घस् घस् सन् ति क वर्ग को च वर्ग होकर अभ्यास को इवर्ण एवं तृतीय अक्षर होकर जिघस् स ति। असार्वधातुक सकार के आने पर धातु के सकार को तकार हो जाता है // 386 // जिघत्सति। वस-निवास करना = विवत्सति। शयितुम् इच्छति। शिशयिषते। वक्तुम् इच्छति = विवक्षति / विवक्षते / होतुम् इच्छति = जुहषति / हातुम् इच्छति = जिहासते।। मिञ् मीङ् माङ् दा र्भ लभ शक पत पद के स्वर को इस आदेश हो जाता है और . सन् के आने पर अभ्यास का लोप हो जाता है // 387 //