________________ 262 कातन्त्ररूपमाला श्रिद्रुनुकमिकारितान्तेभ्यश्चण् कर्तरि // 291 // एभ्यश्चण् भवति कर्तर्यद्यतन्यां परतः / चण् परोक्षाचेक्रीयितसनन्तेषु // 292 // चणादिषु धातोर्विचनं भवति / अभ्यासस्यादिव्यञ्जनमवशेष्यमिति अनादेलोप:। भज श्रिब् सेवायां / अशिश्रियत् / अदुद्रुवत् अदुद्रुवतां / असुनुवत् / कमु कान्तौ। कवर्गस्य चवर्गः // 293 // अभ्यासकवर्गस्य चवों भवति आन्तरतम्यात् / अचकमत् / इति अभ्यासो धातुवत् / पक्षे अचीकमत्। __इन्यसमानलोपोपधाया ह्रस्वश्चणि // 294 // समानलोपवर्जितस्य लघ्वन्तस्योपधाया ह्रस्वो भवति लघुनि धात्वक्षरे इनि चण्परे। . . दी| लघोरस्वरादीनाम् / / 295 // समानलोपवर्जितस्य लघ्वन्तस्य दी? भवति लघुनि धात्वक्षरे इनि चण्परे / कारितस्य लोप: / अचूचुरत् अचूचुरतां अचूचुरन् / असमानलोपोपधाया इति किम् ? क्षिप क्षान्तौ / अचिक्षिपत् / क्षल शौचे / अचिक्षलत्। अद्यतनी में चुरादि गण प्रारम्भ होता है। अद्यतनी से कर्ता में श्रि, द्रु, जु, कम् और कारित प्रत्ययान्त धातुओं से ‘चण्' प्रत्यय होता है // 291 // अट श्रि दि। चण् प्रत्यय, परोक्षा, ये क्रीयित और सन्नंत के आने पर धातु को द्वित्व होता है // 292 // ____ अश्रि श्रि त् ‘अभ्यासस्यादिव्यञ्जनमवशेष्यं' सूत्र से अभ्यास को आदि व्यंजन शेष रहकर अन्त व्यञ्जन का लोप भज् श्रिञ्–सेवा अर्थ में / इवर्ण को इय् होकर चण् का अकार शेष रहकर अशिश्रियत् बना। द्रु-अदुद्रुवत् / अदुद्रुवतां अदुद्रुवन् / असुस्रुवत् / कमु–कांत होना। अट् क कम् अत् क्रम से अभ्यास के कवर्ग को चवर्ग हो जाता है // 293 // अचकमत्। समान लोप वर्जित लघ्वन्त उपधा को लघु धात्वक्षर इन् चण् के आने पर ह्रस्व हो जाता है // 294 // लघु धात्वक्षर इन् चण् के आने पर समान लोप वर्जित लघ्वन्त को दीर्घ हो जाता है // 295 // कारित प्रत्यय का लोप हो जाता है। चुर् चुर् इन् चण् दि = अचूचुरत् / समान लोप वर्जित लघ्वन्त उपधा को ऐसा क्यों कहा ? क्षिप्-क्षांति अर्थ में है। अचि क्षिपत् / क्षल्-अचि क्षलत्।