Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan
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________________ तिङन्त: 265. अपीपिडत् / नट अवस्यन्दने / अनीनटत् / बध संयमने / अबीबधत् / चुट छुट कुट छेदने / अचूचुटत् / अचूछुटत् / अचूकुटत् / पुट चुट अल्पीभावे। अपूपुटत् / अचूचुटत् / मुट चूर्णने। अमूमुटत् / घट चलने। अजीघटत् / छद षद संवरणे। अचीछदत् / असीषदत् / क्षिप क्षान्तौ / अचिक्षिपत् / नक्क धक्क पिशि नाशने / अननक्कत्। अदधक्कत् अपिपिंशत् / चक्क चुक्क व्यथने। अचचक्कत् अचुचुक्कत्। क्षल शौचे। अचिक्षलत् चुद संचोदने। अचूचुदत् / गुडि सुजि जसि पल रक्षणे। अजुगुण्डत् / असुसुञ्जत / अजजंसत् अजजंसतां अजजंसन् / अपीपलत् / तिल प्रतिष्ठायां / अतीतिलत्। तुल उन्माने। अतूतुलत् मूल रोहणे। अमूमुलत्। मान पूजायां। अमीमनत् / श्लिष श्लेषणे / अशिश्लिषत् / जप मानसे। अजीजपत् / ज्ञप मानुबन्धे / अजिज्ञपत् / व्यय क्षये। अविव्ययत् / चूर्ण संकोचने। अचुचूर्णत् / पूज पूजायां। अपुपूजत्। अर्कईड स्तवने। आर्चिक्कत् / ऐडिडत् / शुठ आलस्ये। अशूशुठत् / शुठि शोषणे। अशुशुण्ठत् / पचि विस्तारवचने। अपपञ्चत् / तिज निशामने। अतीतिजत् / वर्ध छेदनपूरणयोः। अववर्धत्। कुबि आच्छादने। अचुकुंबत्। लुबि तुबि अर्दने / अलुलुम्बत् / अतुतुम्बत् / म्रक्ष म्लक्ष रक्षणे / अमम्रक्षत् / अमम्लक्षत् / इल प्रेरणे। ऐलिलत् / लुण्ट स्तेये। अलुलुण्टत् / छर्द वमने। अचछर्दत् / गुडि वेष्टने। अजुगुण्डत्। गर्द अभिकाङ्क्षायां / अजगर्दत् / रुष रोषणे। अरूरुषत् / मडि भूषायां हर्षे च / अपमण्डत् / श्रण दाने / अशिश्रणत् / भडि कल्याणे। अबभण्डत् / तत्रि कुटुम्बधारणे / अततन्त्रत् / मत्रि गुप्तभाषणे। अममन्त्रत् / विद संवेदने / अवीविदत् / दंश दशने। अददंशत् / रूप रूपणे। अरुरूपत्। भ्रूण आशायां। अबुभ्रूणत् / शठ श्लाघायां / अशीशठत् / स्यम वितर्के। असिस्यमत्। गूरी उद्यमे। अजूगुरत् / कुत्स अवक्षेपणे। अचुकुत्सत् / कूट प्रमादे। अचूकुटत् / वञ्च प्रलंभने / अववञ्चत् / मद तृप्तियोगे। अमीमदत् / दिव परिकूजने / अदीदिवत् / कुस्म कुस्मयने / अचुकुस्मत् / चर्च अध्ययने / अचचर्चत् / कण निमीलने। अचीकणत् / जसु ताडने। अजीजसत् / पष बन्धने। अपीपषत् / अम रोगे। आमिमत् / चट स्फुट भेदने / अचीचटत् अपुस्फुटत् / घुषिर् शब्दे / अजूघुषत् / लस शिल्पयोगे / अलीलसत् / भूष अलङ्कारे / अबूभुषत। रक लक आस्वादने / अरीरकत् / अलीलकत् / लिगि विचित्रीकरणे। अलिलिङ्गत् / मुद संसर्गे। अमूमुदत् / मुच प्रमोचने। अमूमुचत् / ग्रस कवलग्रहणे। अजिग्रसत्। पूरी आप्यायने / - अपूपुरत्। असीषदत् / क्षिप-क्षांति करना, अचिक्षिपत् / नक्क धक्क पिशि-नाश होना, अननक्कत् / अदधक्कत / अपि-पिंशत् / चक्क चुक्क-व्यथित होना, अचचक्कत्। अचुचुक्कत् क्षण शुद्ध होना, अचिक्षलत् / चुद-संचोदन करना। किसी कार्य के लिये प्रेरित करना अचूचूदत् / गुडि सुजि जसि पल-रक्षण करना अजुगुण्डत् / असुसुञ्जत् / अजजंसत् / अपीपलत्। तिल-प्रतिष्ठा अर्थ में है, अतीतिलत् / तुल-उत्मान करना तौलना अतूलुलत् / मूल-रोहण करना, अमुमूलत् / मान-पूजा अमीमनत् / श्लिष्-आलिंगन करना, अशिश्लिषत् / जप-मन में जपना, अजीजपत् / ज्ञप, मानु-बंध होना, अजिज्ञपत् / व्यय-क्षय होना, अविव्ययत् / चूर्ण-संकोचन करना, अचुचूर्णत् / पूज-पूजा करना, अपुपूजत् / अर्क ईड-स्तुति करना, आचिकत् / ऐडिडत् / शूठ-आलस्य करना अश-शठत / शठि-शोषण करना, अशशण्ठत् / पचि-विस्तार करना, अपपञ्चत् / तिज-निशामन करना, अतीतिजत् / वर्ध-छेदन पूरण करना, अवबर्धत् / कुबि-आच्छादन करना, अचुकुम्बत् / लुबि तुबि-अर्दन करना, अलुलुंवत् अतुतुम्वत् / म्रक्ष म्लक्ष-रक्षण करना, अमम्रक्षत् / अमम्लक्षत् / इल-प्रेरणा ऐलिलित्, लुण्ट्-चुराना, अलुलुण्ठत् / छर्द-वमन करना अचछर्दत् / गुडि-वेष्टित . करना, अजुगुण्डत् / गर्द-अभिकांक्षा करना। अदगर्दत् / रुष-रूष्ट होना अरूरुषत् / मडि-भूषा और हर्षित होना, अममण्डत् / श्रण-दान देना, अशिश्रणत् भडि-कल्याण करना, अबभण्डत् / तत्रि-कुटुम्ब धारण करना
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