________________ तिङन्त: 267 ___ मास्म भूत् / मास्मैधिष्ट / मास्म पाक्षीत् मास्म पाक्तां मास्म पाक्षुः मास्म पाक्षी: मास्म पाक्तं मास्म पाक्त मास्म पाक्षं मास्म पाक्ष्व मास्म पाक्ष्म / मास्म पक्त मास्म पक्षातां मास्म पक्षत / मास्म पक्था: मास्म पक्षाया मास्म पग्ध्व / मास्म पक्षि मास्म पक्ष्वहि मास्म पक्ष्महि / मा भूत् / मधिष्ट / मा पाक्षात् / मा पक्त। इति अद्यतनी समाप्ता। परोक्षा॥३०४॥ . चिरातीते काले परोक्षा विभक्तिर्भवति / अक्ष्णां पर: परोक्षं / सम्प्रति इन्द्रियाणामविषय इत्यर्थः / चण परोक्षाचेक्रीयितसन्नन्तेषु द्विर्वचने सति। भवतेरः // 305 // भवतेरभ्यासस्य अकारो भवति परोक्षायां / आगमादेशयोरागमो विधिर्बलवान् / इति गुणो न भवति / बभूव बभूवतुः बभूवुः / इडागमो सार्वधातुकस्यादिव्यञ्जनादेरिति व्यञ्जनादाविडागमः / बभूविभ बभूवथुः बभूव / बभूव बभूविव बभूविम। . नाम्यादेर्गुरुमतोऽनृच्छः // 306 // ऋच्छ इति वर्जितान्नाम्यादेर्गुरुमतो धातोरेकस्वरादाम् भवति परोक्षायां / क्रिया, विस्तार और गुण के अर्थ में है। अववर्णत् / पर्ण-हरित भाव में अपपर्णत् / अघ-पाप करना, आजिघत्। इस प्रकार से अद्यतनी में चुरादिगण समाप्त हुआ। मा और मास्म के योग में अद्यतनी में अट् का आगम नहीं होता हैं जैसे—मास्मभूत् / मास्म ऐधिष्ट / मास्म पाक्षीत् / मास्म पाक्तां / मास्म पाक्षुः / इत्यादि। इस प्रकार से अद्यतनी प्रकरण समाप्त हुआ। अथ परोक्षा प्रकरण प्रारम्भ होता है। चिरकाल के अतीत काल में 'परोक्षा' विभक्ति होती है // 304 // अक्षणां परे = परोक्षं-इन्द्रियों से जो परे है वह परोक्ष है। अर्थात् वर्तमान काल में जो इन्द्रियों का विषय नहीं है। . भू अट् अतुस् उस् / “चण् परोक्षा चेक्रीयितसन्नतेषु" इस सूत्र से द्वित्व करने पर भू भू अ। परोक्षा में भू के अभ्यास को अकार हो जाता है // 305 // आगम और आदेश में आगम विधि बलवान् होती है। इससे गुण नहीं होता है। अभ्यास को तृतीय अक्षर हो जाता है। बभूव, बभूवतुः बभूवुः / 'इडागमो सार्वधातुकस्यादिव्यञ्जनादेरिति' इस सूत्र से व्यञ्जन की आदि में इट् का आगम हो जाता है / बभूविथ बभूवथुः बभूव, बभूव बभूविव, बभूविम / ऋच्छ को छोड़कर नाम्यन्त, गुरुमान् एकस्वर वाली धातु से परोक्षा में 'आम्' होता है // 306 // - परोक्षा में आम के बाद कृ धातु का प्रयोग किया जाता है // 307 // एधाम् कृ कृ ए