Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 301
________________ 266 कातन्त्ररूपमाला ____ इत: परमदन्ता: कथ्यन्ते / कथ वाक्यप्रबन्धने / अचकथत् / गण संख्याने / अजगणत् / पठ वट ग्रन्थे। अपपठत् / अववटत् / रह त्यागे। अररहत् / पद गतौ। अपपदत् / कल गतौ संख्याने च / अचकलत् / मह पूजाणां / अममहत् / स्पृह ईप्सायां। अपस्पृहत् / शूच पैशुन्ये / अशुशूवत् / कुमार क्रीडायां / अचुकुमारत् / गोम् उपदेहे / अजुगोमत् / गवेष मार्गणे / अजगवेषत् / भाज पृथक्कर्मणि। अबभाजत् / स्तेन चौर्ये / अतिस्तेनत् / परस्मैभाषा। आगर्वादात्मनेपदी / पद गतौ / अपपदत अपपदेतां अपपदन्त। अपपदथा: अपपदेथां अपपदध्वं / अपपदे अपपदावहि अपपदामहि / मृग अन्वेषणे। अममृगत / कुह विस्मापने / अचुकुहत / शूर वीर विक्रान्तौ / अशुशूरत / अविवीरत / स्थूल परिवृंहणे। अतुस्थूलत / अर्थ उपयाच्चायां / आर्तिथत / संग्राम संयुद्धे / अससंग्रामत् / गर्व माने। अजगर्वत् / आत्मने भाषा // मूत्र प्रस्नवणे। अमुमूत्रत् / पार तीर कर्मसमाप्तौ। अपपारत् / अतितीरत् / चित्र विचित्रीकरणे। अचिचित्रत। छिद्र कर्णभेदे। अचिछिद्रत। अन्ध दृष्ट्युपसंहारे। आन्दधत् / दण्ड दण्डनिपातने / अददण्डत् / सुख दुःख तक्रिययोः / असुसुखत् / अदुदुःखत् / रस आस्वादनस्नेहनयोः / अररसत्। व्यय वित्तसमुत्सर्गे। अवव्ययत्। वर्ण वर्णक्रियाविस्तारगुणवचने। अववर्णत्। पर्ण / ' हरितभावे / अपपर्णत् / अघ पापकरणे / आजिघत् / इति चुरादयः। अततन्त्रत् / मत्रि-गुप्त भाषण करना अममन्त्रत् / बिद-जानना अवीविदत् / दंश-दशना, अददंशत् / रूप-देखना / अरूरुपतं / भ्रूण-आशा करना, अबुभ्रूणत् / शठ-श्लाघा अशीशठत् / स्यम्-वितर्क करना, असिस्यमत् / गूरा-उद्यम करना अजुग्रत् / कुत्स-अवक्षेपण करना, निन्दा। अचुकुत्सत् / कूट कपट-प्रमाद करना, अचुकूटत् / वञ्च-प्रलंभन ठगना, अववञ्चत् / मद-तृप्त होना, अमीमदत् / दिव-परिकूजन करना, अदीदिवत् / कुस्म-कुस्मयने आश्चर्य करना। अचुकुस्मत्। चर्च-अध्ययन करना, अचचर्चत् / कण-निमीलित होना एक आँख बन्द कर निशाना करना / अचीकणत् / पष-बन्धन करना, अपीपषत् / अम रोगी होना, आमिमत् / चट, स्फुट-भेदन करना, अचीचटत् अपुस्फुटत् / घुषिर्-शब्द करना, अजूघुषत् / लस-शिल्प योगे, अलीलसत्। भूष-अलंकृत होना, अबुभुषत् / रक, लक-आस्वादन करना, अरीरकत् अलीलकत् / लिगि विचित्रीकरण, अलिलिंगत् / मुद-संसर्ग, अमूमुदत् / मुच् छूटना, अमूमुचत् / ग्रस-ग्रास खाना, अजिग्रसत् / पूरी-वृद्धिंगत होना, अपूपुरत् / इससे आगे अकारांत कहे जाते हैं कथ-कहना, अचकथत, गण-संख्या करना, अजगणत् / पठ वट-ग्रन्थ पढ़ना, अपपठत, अववटत् रह-त्याग करना, अररहत्। पद-गमन करना, अपपदत्। कल-गति और संख्या करना, अचकलत्। मह—पूजा करना, अममहत् / स्पृह–इच्छा करना, अपस्पृहत् / शुच-पैशुन्य करना, अशुशूचक कुमार क्रीड़ा करना, अचूकुमारत् / गोम-उपदेह करना, अजुगोमत् / गवेष—मार्गण करना, अजवगवेषत् / भाज, पृथक् क्रिया में है, अबभाजत् / स्तेन-चोरी करना, अतिस्तेनत् / यहां तक परस्मैपद हुआ। आगे गर्वपर्यंत आत्मनेपदी हैं। पद-गति अर्थ में, अपपदत। अपपदेतां अपपदन्त / मृग-अन्वेषण करना, अममगत। कह–विस्मापन करना, अचकहत / शर, वीर-विक्रांति अर्थ में है, अशशरत अविवीरत / स्थूल-परिवृंहण होना, अतुस्थूलत / अर्थ-पास जाकर माँगना। आतिथत। संग्राम-युद्ध करना, अससंग्रामत / गर्व-मान करना, अजगर्वत / यहाँ तक आत्मनेपदी हुई हैं। मूत्र-प्रस्रवण करना, अमुमूत्रत् 'पार, तीर-कार्य की समाप्ति, अपपारत्। अतितीरत् / चित्र-विचित्रीकरण, अचिचित्रत् / ' छिद्र-कर्ण भेदन करना, अचिछिद्रत। अंथ-दृष्टि का उपसंहार आन्दधत् / दण्ड–दण्डे से मारना, अददण्डत् / सुख-सुखी होना, दुःख-दुःखी होना, असुसुखत् / अदुदुःखत् / रस-आस्वादन करना, स्नेह करना, अररसत् / व्यय-धन त्याग करना, अवव्ययत् / वर्ण-वर्ण,

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