________________ तिङन्त: 227 इणश्च यो भवति स्वरादावगुणे। यन्ति / एषि इथ: इथ / एमि इव: इम: / इयात् इयातां इयुः / एतु इतात् इतां यन्तु / इहि इतात् इतं इत / अयानि / अयाव अयाम / ऐत् ऐतां / परापि वृद्धिरिण्मात्राश्रितेन यत्वेन बाध्यते / सावकाशानवकाशयोरनवकाशो विधिर्बलवान् / इति न वृद्धिः / इणश्चेति यत्वं / एतेयें हस्तन्याम्॥१४१॥ एतेर्ये परे अटोऽवर्णस्य दी| भवति ह्यस्तन्यां / आयन् / ऐ: ऐतं ऐत / आयं ऐव ऐम / दुह् प्रपूरणे / दादेर्घः // 142 // दादेहस्य घो भवति छुट्यन्ते च / घढधभेभ्यस्तथो?ऽधः // 143 // एभ्य: धावर्जितेभ्य: परयोस्तथोधों भवति / दोग्धि दुग्ध: दुहन्ति / तृतीयादेर्घढधभान्तस्य धातोरादिचतुर्थत्वं स्थ्वोः // 144 // घढधभान्तस्य धातोरादेस्तृतीयस्य चतुर्थत्वं भवति स्ध्वो: परत: / धोक्षि दुग्ध: दुग्ध / दोझि दुह्वः दुह्यः / दुग्धे दुहाते दुहते / दुह्यात् दुह्यातां दुयुः / दुहीत दुहीयातां दुहीरन् / दोग्धु दुग्धात् / दुग्धां दुहन्तु / हुधुड्भ्यां हेर्धि: / दुग्धि दुग्धात् दुग्धं दुग्ध / दोहानि दोहाव दोहाम / दुग्धां दुहातां दुहतां / यन्ति / इयात् / एतु / इहि / इ आनि पंचमी के उत्तम पुरुष में गुण होकर ‘ए अय्' सूत्र लगकर अयानि अयाव अयाम / ह्यस्तनी में-पूर्वस्वर को वृद्धि होकर ऐत ऐतां / इ अन् है / पर भी वृद्धि इण् मात्र के आश्रित यत्व से बाधित हो जाती है। अत: “इणश्च” इस सूत्र से इ को य् हुआ पुन: ह्यस्तनी में पूर्व में अट का आगम करके इण् के य के परे ह्यस्तनी में अट् के अवर्ण को दीर्घ हो जाता है // 141 // अत: 'आयन' बना। ऐ: ऐतं ऐत। आयं' ऐव ऐम। अम् के आने पर 'इ' को 140 सत्र से 'य' करके अट् और दीर्घ करके 'आयम्' बना। दुह् धातु प्रपूरण–दुहने अर्थ में है। दुह् ति है। धुट अंत में आने पर दा आदि के ह को घ् हो जाता है // 142 // दुघ् ति. रहा। धाञ् से वर्जित घ, ढ, ध, भ, से परे त और थ को 'ध्' हो जाता है // 143 // गुण होकर “धुटांतृतीयश्चतुर्थेषु" सूत्र से घ को ग् होकर 'दोग्धि' बना / दुग्ध: दुहन्ति / दुह् सि दुह ध्वे / 'ददेर्घः' से हकार को घ होकर 'दुघ्' बना। __ 'स्' 'ध्व' विभक्ति के आने पर तृतीयादि वाले घ, ढ, ध, भान्त धातु की आदि के तृतीय अक्षर को चतुर्थ हो जाता है // 144 // धुघ् 'अघोषे प्रथम:' से 'धुक्' हो गया 'नामिकरपरः' से स् को ष् होकर गुण होकर 'धोक्षि' बना। दुग्ध:, दुग्ध / दोमि दुह्वः दुह्यः / दुग्धे दुहाते, दुहते / धुक्षे दुहाथे धुग्ध्वे / दुह्यात् / दुहीत / दोग्धु / दुह् हि “हुधुभ्यां हेधि:” ८९वें सूत्र 'धि' होकर दुग्धि बना। दोहानि / दुग्धां। दुह् दि है 'दादेर्घः' सूत्र से ह को घ् “व्यंजनाद्दिस्योः” 116 सूत्र से दि सि का लोप हो गया। १.अयम् प्रयोग में 140 सूत्र की प्राप्ति नहीं है कारण सूत्र का अर्थ है जिस स्वर पर में रहते गुण न हो अम् पर में रहते गुण होता है अतः इअम् इस दशा में इ को गुण करके अय् अप् अम् बना स्वरादि तब भी है अट् दीर्घ हो गया आयम् प्रयोग बना।