Book Title: Katantra Vyakaran
Author(s): Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 281
________________ 246 कातन्त्ररूपमाला ते सनादिप्रत्ययान्ता धातुसंज्ञा भवन्ति / अन् विकरण: कर्तरि / अनि च विकरणे इति गुणः / चोरयति चोरयत: चोरयन्ति / मत्रि गुप्तभाषणे। 'अनिदनुबन्धानामगुणे' अत एव इदनुबन्धानां धातूनां नुरागमोऽस्ति गुणागुणे प्रत्यये परे / मन्त्रयते मन्त्रयेते मन्त्रयन्ते / वृञ् आवरणे। ___ अस्योपधाया दीपों वृद्धिर्नामिनामिनिचट्स // 222 // अस्योपधाया दीघों भवति नाम्यन्तानां वृद्धिर्भवति इन् इच् अट् एषु परत: / वारयति वारयत: वारयन्ति / वारयते। भावकर्मणोश्च / कारितस्यानामिड्विकरणे // 223 // / कारितस्य लोपो भवति आम्इड्विकरणवर्जिते प्रत्यये परे। स्वरादेशः परनिमित्तकः पूर्वविधि प्रति स्थानिवत् // 224 // स्वरादेश: परनिमित्तक: पूर्ववर्णस्य विधि प्रति स्थानिवद्भवति / चोर्यते / वार्यते। गुडि सजि पल रक्षणे / गुण्डयति / सञ्जयति / पालयति / उपधाभूतस्येति किं ? अर्च पूजायां / अर्चयति / चोरयेत् / मन्त्रयेत् / वारयेत् / चोरयतु / मन्त्रयतां / वारयतु वारयतां / अचोरयत्। अमन्त्रयत / अवारयत। . गुण्डयेत् / गुण्डयतु / अगुण्डयत् / संजयेत। संजयतु / असंजयत् / पालयेत् / पालयतु / अपालयत् / अर्चयेत् / अर्चयतु। आर्चयत् / भावकर्मणोश्च / गुण्ड्यते / संज्यते / पाल्यत / अर्घ्यंत इत्यादि / एवं सर्वमन्नेयं / इति चरादिः। इस सूत्र से 'चोरि' को धातु संज्ञा होकर 'अन् विकरण: कर्तरि' से अन् विकरण होकर ‘अनि च विकरणे' सूत्र 23 से गुण होकर 'चोरयति' बना। मत्रि—गुप्त भाषण करना / 'अनिदनु-बंधानामगुणे' सूत्र 56 से इकार अनुबंध धात को न का आगम होता है गणी अगणी प्रत्यय के आने पर / न का आगम 'मन्त्र्' 'चुरादेश्च' सूत्र से इन् प्रत्यय ते धातवः' से धातु संज्ञा होकर अन् विकरण और गुण होकर 'मन्त्रयते' बना। वृञ्-आवरण करना। ___ इन् इच् अट् प्रत्ययों के आने पर इसकी उपधा को दीर्घ होता है और नाभ्यन्त को वृद्धि होती है // 222 // . __वृ को वृद्धि होने से वार् इन् होकर धातु संज्ञा होकर अन् विकरण एवं गुण होकर ‘वारयति' बना। वारयते इत्यादि / भाव और कर्म में आम् और इट् प्रत्यय को छोड़कर अन्य प्रत्यय के आने पर कारित संज्ञक 'इन्' प्रत्यय का लोप हो जाता है // 223 // परनिमित्तक स्वरादेश पूर्व वर्ण की विधि के प्रति स्थानिवत् होता है // 224 // अत: चोर्यते, मन्त्र्यते, वार्यते / गुड्, सज्, पल-रक्षण करना / इन प्रत्यय, धातु संज्ञा, नु का आगम, अन् विकरण और गुण होकर गुण्डयति। सञ्जयति / पालयति / उपधाभूत को ही दीर्घ हो ऐसा क्यों कहा ? अर्च-पूजा अर्थ में है। इन् प्रत्यय होकर गुण होकर 'अर्चयति' / चोरयेत् / मन्त्रयेत / वारयेत् / चोरयतु / मन्त्रयतां / वारयतु / वारयतां / अचोरयत् / अमन्त्रयत / अवारयत / गुण्डयेत् / गुण्डयतु / अगुण्डयत् / संजयेत् / संजयतु / असञ्जयत् / पालयेत् / पालयतु / अपालयत् / अर्चयेत् / अर्चयतु / आर्चयत् /

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