________________ 258 कातन्त्ररूपमाला सेट्स वा // 277 // नाम्यन्ताद्धातो: परस्य सेटामाशीरद्यतनीपरोक्षाणां धकारस्य ढो भवति वा / असविढ्वं असविध्वं / नहेर्द्धः // 278 // नहेर्हकारस्य धो भवति धुट्यन्ते च / अनात्सीत् अनाद्धां अनात्सुः / अनात्सी: अनाद्धं अनाद्ध / अनात्सं अनात्स्व अनात्स्म। अनद्ध अनत्सातां अनत्सत। अनद्धा: अनत्साथां अनद्धवं। अनत्सि अनत्स्वहि अनत्स्महि / इति दिवादिः। स्तुसुधूऽभ्यः परस्मै / / 279 / / स्तुसुधूभ्य इडागमो भवति परस्मैपदे सिचि परे। अस्तावीत् अस्ताविष्टां अस्ताविषुः। धू कम्पने / अधावीत् / उदनुबन्धत्वाद्विकल्पेनेट् / आशिष्ट आशिषातां आशिषत / आष्ट आक्षातां आक्षत / अचैषीत् अचेष्टां अचैषुः / अचेष्ट अचेषातां अचेषत / इति स्वादिः। . अदितुदिनुदिक्षुदिस्विद्यतिविद्यतिविन्दतिविनत्तिछिदिभिदिहदिशदिसदिपदिस्कन्दिखिदेर्दात् // 280 // . एभ्य: षोडशभ्य: परमसार्वधातुकमनिड् भवति / व्यञ्जनान्तानामनिटाम्॥२८१॥ नाम्यंत धातु से आशी: अद्यतनी परोक्षा में इट् सहित होने पर धकार को ढकार विकल्प से होता है // 277 // असविढ्वं, असविध्वं / अट नह सिच् 'ई' दि। नह के हकार को धुट् अन्त में धकार हो जाता है // 278 // 'अघोषे प्रथम:' से प्रथम अक्षर होकर उपधा को दीर्घ होकर अनात्सीत् अनाद्धां अनात्सुः / आत्मनेपद में-अनद्ध अनत्सातां अनत्सत / इस प्रकार से अद्यतनी में दिवादिगण सम अद्यतनी में स्वादिगण प्रारम्भ होता है। परस्मैपद में सिच के आने पर स्तु, सु और धू धातु से इट् का आगम होता है // 279 // अस्तावीत् अस्ताविष्टां / धूञ्-कंपित होना। अघावीत् / उदनुबंध में विकल्प से इट् होता है। अशूद्व्याप्तौ आशिष्ट आशिषातां / अनिट् पक्ष में-आष्ट आक्षातां आक्षत / चिञ्-चयन अर्थ में है। अचैषीत् अचेष्टां अचैषुः / अचेष्ट अचेषातां / इस प्रकार से अद्यतनी में स्वादि गण समाप्त हुआ। अद्यतनी में तुदादिगण प्रारंभ होता है। अद् तुद् नुद् क्षुद् स्विद् विद् विन्द् विद् छिद् भिद् हद् शद् सद् पद् स्कंद और खिद् इन सोलह दकारांत धातु से असार्वधातुक में इट नहीं होता है // 280 // / परस्मैपद में सिच् के आने पर व्यंजनान्त अनिट् धातु की वृद्धि हो जाती है // 281 //