________________ तिङन्तः 243 उकाराच्च विकरणात्परस्य हेलोपो भवति / तनु तनुतात् तनुतं तनुत / तनवानि तनवाव तनवाम / मनुतां मन्वातां मन्वतां / करोतु कुरुतात् कुरुतां कुर्वन्तु / कुरुतां / अतनोत् अतनुतां अतन्वन् / अतनोः / अमनुत अमन्वातां अमन्वत / अमनुथा: अमन्वाथां अमनुध्वं / अमन्वि अमनुवहि अमन्वहि अमनुमहि अमन्महि / अकरोत् अकुरुतां अकुर्वन् / अकुरुत। भावकर्मणोः / तन्यते। मन्यते / “भावकर्मणोश्च / यणाशिषोर्ये” इतीकारागम: / क्रियते / इति तनादिः / अथ क्रयादिगणः डुक्रीञ् द्रव्यविनिमये। ना क्रयादेः / / 211 // क्रयादेविकरणसंज्ञको ना भवति कर्तरि विहिते सार्वधातुके परे / क्रीणाति / उभयेषामिति ईकारः / क्रीणीतः। . यादीनां विकरणस्य // 212 // क्यादीनां विकरणाकारस्य लोपो भवति स्वरादावगुणे सार्वधातुके परे / क्रीणन्ति / वृञ् संभक्तौ / वृणीते वृणाते वृणते / ग्रहञ् उपादाने / सपरस्वरायाः सम्प्रसारणमन्तस्थायाः // 213 // परेण धातुस्वरेण सह अन्तस्थायाः सम्प्रसारणं भवति / इत्यधिकृत्य। ग्रहिज्यावयिव्यधिवष्टिव्यचिपच्छिवश्चिभ्रस्जीनामगुणे // 214 // तनु तनुतात् / तनवानि / मनुतां / करोतु / कुरुतां / अतनोत् / अमनुत / अकरोत् / अकुरुत / भावकर्म में-तन्यते / मन्यते कृ य ते 'यणाशिषोर्ये' इस सूत्र से इकार का आगम होकर 'क्रियते' बना / इस प्रकार से तनादि प्रकरण समाप्त हुआ। अथ क्रयादिगण प्रारम्भ होता है। डुक्री खरीदने अर्थ में है। कर्ता में सार्वधातुक के आने पर क्यादि गण में विकरण संज्ञक 'ना' हो जाता है // 211 // ___ क्रीणाति / 'उभयेषामीकारो व्यञ्जनादावदः' सूत्र 157 से क्यादि गण में व्यंजनादि अगुण विभक्ति के आने पर विकरण को ईकार हो जाता है / क्रीणीत: / क्रीणा अन्ति / स्वरादि अगुण सार्वधातुक के आने पर क्यादि गण में विकरण ना के आकार का लोप हो जाता है // 212 // अत: 'क्रीणन्ति' बना। वृङ् धातु वरण अर्थ में है। वृणीते वृणाते वृणते / ग्रहब् धातु ग्रहण अर्थ में है। ___ पर धातु स्वर के साथ अंतस्थ को संप्रसारण हो जाता है // 213 // इस सूत्र को अधिकृत करके ग्रह, ज्या, वय, व्यध्, वश्, व्यच् प्रच्छ व्रश्च भ्रस्ज् धातु के अन्तस्थ को पर स्वर के साथ अगुण विभक्ति के आने पर संप्रसारण हो जाता है // 214 //