________________ तिङन्त: 201 धातोरात्मनेपदानि भवन्ति भावकर्मणोरर्थयोः / अकर्मकाद्धातोर्भावे, सकर्मकात्कर्मणि च / लज्जासत्तास्थितिजागरणं वृद्धिक्षयभयजीवितमरणम्। 'स्वप्नक्रीडारुचिदीप्त्यर्था धातव एते कर्मविमुक्ताः // 1 // क्रियापदं कर्तृपदेन युक्तं व्यपेक्षते यत्र किमित्यपेक्षां।। सकर्मकं तं सुधियो वदन्ति शेषस्ततो धातुरकर्मकः स्यात् / / 2 / / को भाव: ? सन्मानं भावलिङ्गं स्यादसंपृक्तं तु कारकैः / धात्वर्थ: केवल: शुद्धोः भाव इत्यभिधीयते // 1 // तत्र प्रथमैकवचनमेव। किं कर्म ? क्रियाविषयं कर्म। तत्र द्विवचनबहुवचनमपि / मध्यमोत्तमपुरुषावपि। सार्वधातुके यण्॥ 31 // धातोर्यण् भवति भावकर्मणोविहिते सार्वधातुके परे। नाम्यन्तयोर्धातुविकरणयोर्गुणः // 32 // भाव और कर्म के अर्थ में धातु से आत्मनेपद हो जाता है। अकर्मक धातु से भाव में एवं सकर्मक धातु से कर्म में प्रयोग होता है। ___ अकर्मक धातु कौन हैं ? श्लोकार्थ-लज्जा, सत्ता, स्थिति, जागरण, वृद्धि, नाश, भय, जीवन, मरण, शयन, क्रीड़ा, रुचि, क्रांति इन अर्थ वाले धातु अकर्मक होते हैं। अर्थात् इनके प्रयोग में कर्म कारक नहीं रहता है // 1 // __ सकर्मक धातु कौन हैं ? __ जहाँ कर्ता पद से युक्त क्रिया पद, "क्या” इसकी अपेक्षा रखता है, विद्वान् जन उस धातु को सकर्मक कहते हैं। बाकी शेष धातुएँ अकर्मक हैं // 2 // भाव किसे कहते हैं ? श्लोकार्थ जो सन्मात्र है स्वरूपत: है भाव लिंग है कारकों के सम्पर्क से रहित है ऐसा केवल, शुद्ध धातु का अर्थ 'भाव' कहलाता है // 1 // इस भाव में प्रथम पुरुष का एकवचन ही होता है। कर्म किसे कहते हैं ? क्रिया के विषय को कर्म कहते हैं। कर्म में द्विवचन बहुवचन भी होते हैं। एवं मध्यम, उत्तम पुरुष भी होते हैं। यहाँ भाव अर्थ में विवक्षित भू धातु से आत्मनेपद के प्रथम पुरुष का एकवचन 'ते' विभक्ति है। 'भू ते' है। __सार्वधातुक में 'यण' होता है // 31 // भाव, कर्म में कहे गये सार्वधातुक के आने पर धातु से 'यण' विकरण होता है। णकार का अनुबंध हो जाता है। नाम्यंत, धातु और विकरण को गुण हो जाता है // 32 // १.शयन इति पाठांतरं।