________________ तिङन्त: 203 . रुचादिभ्यो ङानुबन्धेभ्यश्च कर्त्तर्यात्मनेपदानि भवन्ति / एधते एधेते एधन्ते / एधसे एधेथे एधध्वे / एधे एधावहे एधामहे / भावे-एध्यते / डुपचषुञ् पाके / अकार: समाहारानुबन्धे / इन्व्यजादेरुभयम्॥ 37 // इन्नन्तात् आनुबन्धाद्यजादेश्च कर्तर्युभयपदानि भवन्ति / पचति पचत: पचन्ति / पचसि पचथ: पचथ / पचामि पचाव: पचाम: / पचते पचेते पचन्ते। पचसे पचेथे पचध्वे। पचे पचावहे पचामहे / भावेपच्यते / अविवक्षितकर्मकोऽकर्मको भवति / कर्मणि-पच्यते पच्येते पच्यन्ते / पच्यसे / पच्येथे पच्यध्वे। पच्ये पच्यावहे पच्यामहे / स्मेनातीते // 38 // स्मेन संयोगेऽतीते काले वर्तमाना विभक्तिर्भवति / भवति स्म / एधते स्म / पचति स्म / पचते स्म इत्यादि। एधेते एधन्ते एधे रुचादि और ङानुबंध वाली धातुएँ कर्ता में आत्मने पद होती हैं // 36 // एध् ते है 'अन् विकरण: कर्तरि' २२वें सूत्र से अन् विकरण होकर 'एधते' बना। ऐसे ही ‘एध् अ आते' हैं 'आते आथे इति च' सूत्र से आ को 'इ' होकर संधि होकर ‘एधेते' ‘एध् अ अन्ते' है सूत्र 26 से एक अकार का लोप होकर 'एधन्ते' बना। एध् अ ए 26 सूत्र से अकार का लोप होकर ‘एधे' बना। एध् अ वहे और महे है। सूत्र 29 वें से अकार को दीर्घ होकर 'एधावहे' ‘एधामहे' बना। प्रयोग एधते ' एधसे एधेथे एधध्वे एधावहे एधामहे भाव में—यण विकरण से 'एध्यते' बना है / यह धातु अकर्मक है अत: कर्म में रूप नहीं बने हैं। डुपचषुञ् धातु पकाने अर्थ में है / डुषुञ् अनुबंध है, अकार समाहार अनुबंध में है। . इन्नंत, आनुबंध, यजादि धातु कर्ता में उभयपदी होते हैं // 37 // पच धात में ब का अनुबंध होता है अत: इसके रूप परस्मैपद और आत्मनेपद दोनों में चलेंगे। पूर्वोक्त अन् विकरण और अन्ति और ए आने पर अकार का लोप और व, म के आने पर अकार को दीर्घ करके उभयपद में रूप चला लीजिये। यथा पचति . पचतः पचन्ति / पचते . पचेते पचसि पचथः पचथ पचथ | पचसे पचध्वे पचामि पचावः पचामः पचावहे पचामहे भाव में-पच्यते / यद्यपि पच धात सकर्मक है तो भी कर्म की विवक्षा न हो तो अकर्मक होकर भाव में प्रत्यय होता है। कर्मणिप्रयोग मेंपच्यते, पच्येते पच्यन्ते / पच्यसे पच्येथे, पच्यध्वे / पच्ये, पच्यावहे; पच्यामहे / . स्म के साथ अतीत काल हो जाता है // 38 // ‘स्म' शब्द के प्रयोग के साथ 'वर्तमाना' विभक्ति अतीत काल के अर्थ में हो जाती है। पचन्ते पचेथे