________________ 204 कातन्त्ररूपमाला विध्यादिषु सप्तमी च॥ 39 // विध्यादिषु वर्तमानाद्धातोः सप्तमी पञ्चमी च भवति। के विध्यादय: ? विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाध्येषणसम्प्रश्नको विधिः / विधि: कर्त्तव्योपदेशः / अथवा अज्ञातज्ञापको विधि: / देवान् यजेत / यजतु / यजतां / होमं जुहुयात् / जुहोतु / यत्र क्रियमाणे प्रत्यवायोऽस्ति तनिमन्त्रणं / इह श्राद्धे न भुञ्जीत / न भुङ्क्तां भवान् / यत्र क्रियमाणे प्रत्यवायो नास्ति तदामन्त्रणं / इहासीत / आस्तां भवान् / सत्कारपूर्वको व्यापारोऽध्येषणं / यूयं माणवकमध्यापयेध्वम् / कर्त्तव्यालोचना सम्प्रश्न: / अहो किं व्याकरणमधियीय उत वेदमधियीय / अहो किं नाटकमध्ययै आहोस्विदलङ्कारमध्ययै / याच्या प्रार्थना / भिक्षां मे दध्याः / क्षेत्रं मे दधीथाः / कन्यां मे देहि / मम सुवर्णं दत्स्व / आदिशब्दात्प्रेषणविज्ञापनाज्ञापनादयः / क्षीणं प्रति कर्मप्रतिपादनं प्रेषणं / गृहीतवेतनस्त्वं / कर्माणि कुर्याः / कुर्वीथाः। कुरु। कुरुष्व। अधिकं प्रति स्वकार्यसूचनं विज्ञापनं / अहो देव इदं कार्यमवधारयः। अवधारय। सर्वेषां स्वस्वकार्यनियमप्रतिपादनमाज्ञापनं / विप्रा एवं प्रवर्तेरन् प्रवर्तन्ताम् / यतय एवं चरेयुः / याशब्दस्य च सप्तम्याः // 40 // विधि आदि में सप्तमी और पञ्चमी होती है // 39 // विधि आदि अर्थों में वर्तमान धातु से 'सप्तमी' और 'पञ्चमी' विभक्तियाँ होती हैं। विधि आदि कौन-कौन हैं ? विधि, निमन्त्रण, आमन्त्रण, अध्येषण और संप्रश्नक ये विधि शब्द से कहे जाते हैं। विधि-कर्तव्य का उपदेश देना अथवा अज्ञात को बतलाना / जैसे—देवान् यजेत, यजतु, यजतां देवों की पूजा करना चाहिये। होमं जुहुयात्, जुहोतु-होम करना चाहिये। जिसके करने में प्रत्यवाय (बाधा) है वह निमन्त्रण है। ____ जैसे—इह श्राद्धे न भुंजीत, न भुक्तां भवान्–इस श्राद्ध में आपको भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन नहीं करिये। जिसके करने में प्रत्यवाय नहीं है वह आमन्त्रण है। -इह आसात्, आस्ता भवान्–यहाँ आप बैठिये, ठहरिये / सत्कार पूर्वक व्यापार 'अध्येषण' कहलाता है। जैसे—यूयं माणवकं अध्यापयेध्वं—आप लोग बालक को पढ़ाइये। कर्तव्य की आलोचना-विचार करना संप्रश्न कहलाता है। अहो किं व्याकरणमधियीय. उत वेदमधियीय—मैं व्याकरण पहूँ अथवा वेद पहूँ ? अहो किं नाटकमध्ययै अहोस्विदलंकारमध्ययै-अहो मैं नाटक का अध्ययन करूँ या अलंकार का अध्ययन करूँ ? याञ्चा–प्रार्थना-भिक्षां मे दद्या:-मुझे भिक्षा देवो। क्षेत्रं मे दधीथा:-मुझे क्षेत्र देवो। कन्यां मे देहि-मुझे कन्या देवो। मम सुवर्णं दत्स्व-मुझे सुवर्ण देवो। ____ आदि शब्द से प्रेषण, विज्ञापन, ज्ञापन, आज्ञापन आदि अर्थ लेना चाहिये / क्षीणं प्रति कर्मप्रतिपादनं प्रेक्षणं-क्षीण के प्रति कर्म का प्रतिपादन करना प्रेषण कहलाता है। जैसे-गृहीतवेतनस्त्वं-तू वेतन ले चुका है। कर्माणि कुर्याः, कुर्वीथा:, कुरु, कुरुष्व–काम करो। अधिकं प्रति स्वकार्य सूचनं विज्ञापनं-अधिक के प्रति अपने कार्य को सूचित करना विज्ञापन है। अहो देव ! इदं कार्यमवधारये:, अवधारय-अहो देव ! इस कार्य को अवधारण करो। सभी को अपने अपने कार्य के नियम का प्रतिपादन करना 'आज्ञापन' कहलाता है। विप्रजन इस प्रकार प्रवृत्ति करें। यतिगण इस प्रकार की चर्या करें। ___ इस विधि आदि अर्थ में पहले सप्तमी आती है। भू यात् है अन् विकरण हो गया। गुण होकर 'भव् अ यात्' रहा। अकार से परे सप्तमी के 'या' शब्द को ‘इकार' होता है // 40 // .