________________ तिङन्त: 215 बुव ईड्वचनादिः // 81 // ब्रुव ईड् भवति वचनादिर्भूत्वा व्यञ्जनादौ गुणिनि सार्वधातुके परे / नाम्यन्तयोरिति गुण: / ब्रवीति / द्वित्वबहुत्वयोश्च परस्मै // 82 // सर्वेषां धातूनां विकरणानां च सार्वधातुके परस्मैपदे पञ्चम्युत्तमवर्जिते द्वित्वबहुत्वयोश्च गुणो न भवति / ब्रूतः। स्वरादाविवर्णोवर्णान्तस्य धातोरियुवौ // 83 // इवर्णउवर्णान्तस्य धातोरियुवौ भवत: स्वरादावगुणे / ब्रुवन्ति / ब्रवीषि ब्रूथ: ब्रूथ / ब्रवीमि ब्रूव: ब्रूमः / बुवस्त्यादीनामडादयः पञ्च // 84 // बूधातो: परेषां त्यादिपञ्चकानामडादय: पञ्च भवन्ति / अट् अतुस् उस् थल् अथुस् इत्येते वक्तव्याः / तत्सन्निधौ बुव आहः // 85 // तेषामडादीनां सन्निधौ ब्रूधातोराहादेशश्च भवति / आह आहतु: आहुः / थल्याहेः // 86 // थलि परे आहेरित्येतस्य हकारस्य धकारो भवति / आत्थ आहतुः / सर्वेषामात्मनेसार्वधातुकेऽनुत्तमे पञ्चम्याः // 87 / / व्यञ्जनादि गुणी सार्वधातुक के परे ब्रू धातु से ईट् आगम होता है // 81 // नाम्यंत को गुण होकर ब्रो ई अ ति / अन् विकरण का लुक् होकर संधि होकर 'ब्रवीति' बना। द्विवचन, बहवचन को परस्मै पद में गण नहीं होता है // 82 // सभी धातु को और विकरण को पञ्चमी के उत्तम पुरुष से वर्जित सार्वधातुक परस्मैपद में द्विवचन, बहुवचन को गुण नहीं होता है। अत: 'बूत:' बना। ____ स्वरादि वाली अगुणी विभक्ति के आने पर धातु के इवर्ण, उवर्ण को इय् उव् हो .जाता है // 83 // अत: 'बुवन्ति' बना। ब्रवीति ब्रूत: बुवन्ति / ब्रवीषि ब्रूथ: बूथ / ब्रवीमि ब्रूव: ब्रूमः / ____ब्रू धातु से परे ति आदि पाँच विभक्तियों में क्रम से अट् आदि पाँच आदेश होते हैं // 84 // ति तस् अन्ति सि थस् इनको अट् अतुस् उस् थल् अथुस् ये पाँच आदेश होते हैं। इन अट आदि की सन्निधि होने पर बू धातु को आह् आदेश होता है // 85 // ब्रू को आह् एवं ति को 'अट्' आदेश होकर 'आह' बना है। ऐसे ही आह, आहतुः, आहुः / थल् के आने पर आह् के हकार को धकार हो जाता है // 86 // पुन: ध् को प्रथम अक्षर होकर 'आत्थ' आहथुः बना। पंचमी के उत्तम पुरुष से वर्जित सार्वधातुक आत्मने पद के आने पर सभी धातु और विकरण को गुण नहीं होता है // 87 //