________________ तद्धितं 191 द्वित्रिशब्दाभ्यां परोऽयट् प्रत्ययो भवति समूहेऽर्थे / द्वयोः समूहः द्वयं / त्रयाणां समूहः त्रयं / उत्सेधमानं तिर्यग्मानमिति द्विविधं मानं / मात्रट / / 555 // परिमाणे मात्रट प्रत्ययो भवति / ऊरु:प्रमाणमस्य ऊरुमात्रमुदकं / ऊरुमात्री परिखा। ___ यत्तदेतद्भ्यो डावन्तु // 556 // .यद तद् एतद् इत्येतेभ्य: परो डावन्तु प्रत्ययोः भवति परिमाणेऽर्थे / उकार उच्चारणार्थ: / यत्परिमाणमस्य यावान् / एवं तावान् / एतावान्। किमो डियन्तुः // 557 // किम: शब्दात्परो डियन्तु प्रत्ययो भवति परिमाणेऽर्थे / किं परिमाणमस्य कियान् / इदमः // 558 // इदम: परो डियन्तु प्रत्ययो भवति परिमाणेऽर्थे / इदं परिमाणमस्य इयान् / अभूततद्भावे कृभ्वस्तिषु विकारात् च्विः // 559 / / अभूततद्भावे विकारात् विप्रत्ययो भवति कृश्वस्तिषु परत:। द्वयोः समूहः द्वि + अयट् ‘इवर्णावर्णयोर्लोपः' इत्यादि इवर्ण का लोप करके द्वयं, त्रयाणां समूहः त्रयं बना। मान के दो भेद हैं / उत्सेधमान और तिर्यग्मान-अर्थात् ऊँचाई का प्रमाण और चौड़ाई का प्रमाण / मान को परिमाण भी कहते हैं। परिमाण अर्थ में मात्रट् प्रत्यय होता है // 555 // उरू प्रमाणं अस्य उरुमात्रं-जलं, उरुमात्री-परिखा। यत् तत् एतद् शब्द से परिमाण अर्थ में 'डावन्तु' प्रत्यय होता है // 556 // यहाँ उकार उच्चारण है / यद् डावन्तु “डानुबंधेऽन्त्यस्वरादेलोप:' ५१०वें सूत्र से यद् के अद् का लोप होकर यावन्त बना। ऐसे ही तावन्त् एतावन्त् हैं लिंग संज्ञा होकर सि विभक्ति आने से ‘यावान् तावान् एतावान् बन गया। किम शब्द से मान अर्थ में 'डियन्त' प्रत्यय होता है // 55 // किं परिमाणं अस्य डानुबंध से इम् का लोप होकर कियान् बना। - इदं शब्द से मान अर्थ में डियन्तु प्रत्यय होता है // 558 // इदं परिमाणं अस्य यहाँ इदं को इन् होकर 'इवर्णावर्णः' इत्यादि से इकार का लोप होकर इयन्त् + सि= इयान् बना। अभूत के तद्भाव अर्थ में कृ, भू, अस् धातु आने पर विकार अर्थ में 'च्चि' प्रत्यय होता है // 559 // जो जिस रूप नहीं है पन: उस रूप होता है उसे अभत तद्भाव कहते हैं और इसे ही विकार कहते हैं जैसे अशुक्लं शुक्लं करोति—जो श्वेत नहीं है उसे श्वेत करता है। यहाँ शुक्ल + अम् है विभक्ति का लोप होकर