________________ तद्धितं 189 इदंकिंभ्यां थमुः कार्यः // 543 // इदंकिंभ्यां पर: थमः कार्य: प्रकारवचने / अनेन प्रकारेण इत्थं / केन प्रकारेण कथम्। आख्याताच्च तमादयः // 544 // नाम्न आख्याताच्च परास्तमादय: प्रत्यया भवन्ति / प्रकृष्टे तमतररूपाः // 545 // प्रकृष्टार्थे एते प्रत्यया भवन्ति। प्रकृष्ट आढ्य: आयतरः आढ्यतम: आढ्यरूपः। एवं वैयाकरणतम: वैयाकरणतर: वैयाकरणरूप: / पचतितमः पचतितर: पचतिरूप: / ईषदसमाप्तौ कल्पदेश्यदेशीयाः // 546 // ईषदपरिसमाप्तौ अर्थे कल्पदेश्यदेशीया एते प्रत्यया भवन्ति / ईषदपरिसमाप्त: पटुः पटुकल्प: / बातदश्य। पचतिदेशीयं / पचतिकल्पं। [एतौ अव्ययौ पुल्लिगी। अयं नपुंसकलिंग: पचतिरूपं] / - कुत्सितवृत्तेर्नाम्नः पाशः // 547 // कुत्सितवृत्तेर्नाम्न: पर: पाश: प्रत्ययो भवति / कुत्सितो वैयाकरणो वैयाकरणपाशः / भूतपूर्ववृत्तेर्नाम्नश्चरट् // 548 // भूतपूर्ववृत्तेर्नाम्न: परश्चरट् प्रत्ययो भवति / टकारः षणटकारानुबन्धादिति विशेषणाऽर्थः / भूतपूर्व आढ्य: आढ्यचरः। आढ्यचरी। आढ्यचरं / भूतपूर्वो राजा राजचरः / भूतपूर्वा राज्ञी राजचरी। एवं देवचरः। देवचरी। इदं किं से प्रकार अर्थ में थमु प्रत्यय होता है // 543 // __ अनेन प्रकारेण इदम् को 541 सूत्र से इत् होकर इत्थं बना, किं को 'क' होकर कथं बना। आख्यात नाम से परे तम आदि प्रत्यय होते हैं // 544 // प्रकृष्ट अर्थ में तम, तर और रूपये प्रत्यय होते हैं // 545 // प्रकृष्ट: आढ्य:, आयतरः, आढ्यतमः, आढ्यरूप: / ऐसे ही वैयाकरणतमः, वैयाकरणतर:, * वैयाकरणरूप: बना। सभी जगह प्रकृष्ट अर्थ में ये प्रत्यय हो जाते हैं। पचतितमः, पचतितरः / पचति के पहले के दो अव्यय पुल्लिंग हैं। और पचतिरूपं, यह नपुंसकलिंग है। पूर्णता में किंचित् कमी न रहने से कल्प, देश्य और देशीय प्रत्यय होते हैं // 546 // ईषत् अपरिसमाप्त:-किंचित् कम पटु है। ईषत् अपरिसमाप्त: पटुः = पटुकल्पः, पटुदेश्य, पटुदेशीयः। ऐसे ही पचतिकल्पः, पचतिदेश्य:, पचतिदेशीय: बना। (आचार्य से किंचित् कम= . आचार्यकल्प: चन्द्रसागर: इत्यादि)। कुत्सित शब्द से परे पाश प्रत्यय होता है // 547 // कुत्सित: वैयाकरण: = वैयाकरणपाश: बना। भूतपूर्व वृत्ति वाले नाम से परे 'चरट्' प्रत्यय होता है // 548 // यहाँ प्रत्यय में टकार शब्द “षणटकारानुबंधात्” इसमें विशेषण के लिये है मतलब टकारानुबंध से जो कार्य होता है। सो यहाँ हो जायेगा। भूतपूर्व: आढ्य:-जो पहले धनी था अब नहीं है इस अर्थ में आढ्यचरः, स्त्रीलिंग में-आढ्यचरी, नपुंसक में आढ्यचरं / ऐसे ही भूतपूर्वो राजा = राजचर: राजचरी, देवचर: देवचरी इत्यादि।