________________ 72 कातन्त्ररूपमाला नपुंसकलिङ्गे वर्तमान: स्वरो ह्रस्वो भवति / सोमपम् / सोमपे / सोमपानि / हे सोमप / हे सोमपे ! हे सोमपानि। पुनरपि। सोमपं / सोमपे। सोमपानि। शेषं पुल्लिङ्गवत् / इत्याकारान्ताः / इकारान्तो नपुंसकलिङ्गो वारिंशब्दः / सौ नपुंसकात्स्यमोलोपो न च तदुक्तं // 245 // नपुंसकात्परयो: स्यमो.पो भवति तदुक्तं कार्यं न भवति / वारि / नामिनः स्वरे // 246 // नाम्यन्तानपुंसकलिङ्गान्नुरागमो भवति स्वरे परे / औरीमिति ईत्वं णत्त्वञ्च / वारिणी। जसि पूर्ववत् / नुरागमः / सामान्यविशेषयोर्विशेषो विधिर्बलवान् इति न्यायात् / उक्तत्श्च। सामान्यशास्त्रतो नूनं विशेषो बलवान् भवेत्। परेण पूर्वबाधो वा प्रायशो दृश्यतामिह // 1 // धुट्स्वराघुटि नुः इत्यनेन सूत्रेण नुरागमो भवतीत्यर्थः // ___ इन्हन्पूषार्यम्णां शौ च // 247 // इन् हन् पूषन् अर्यमन् इत्येतेषामुपधाया दी? भवति नपुंसकलिङ्गे जस्शसोरादेशे शौ चासम्बुद्धौ सौ च परे / वारीणि। इस प्रकार से आकारांत शब्द हुये। अब इकारांत नपुंसक लिंग वारि शब्द है। वारि + सि, वारि + अम् नामि है अन्त में जिनके ऐसे शब्दों में नपुंसकलिंग से परे सि, अम् का लोप होकर 'मु' तु का आगम नहीं होता है // 245 // अत: वारि, वारि बना। वारि + औ नाम्यंत नपुंसक लिंग से परे नु का आगम हो जाता है स्वर वाली विभक्ति के आने पर // 246 // अत: 'औरीम्' सूत्र से औ को 'ई' एवं रघुवर्णेभ्य: इत्यादि सूत्र के निमित्त से न् को ण् होकर वारिणी बना। ___ जस् विभक्ति के आने पर पूर्ववत् जस् को 'इ' और नु का आगम तथा घुटि चासंबुद्धौ' से दीर्घ प्राप्त था। यद्यपि यहाँ 'नामिन: स्वरे' सूत्र से नु का आगम हो सकता था फिर भी सामान्य और विशेष में विशेष विधि बलवान होती है इस न्याय से 'धुट् स्वराद् घुटि न:' २४०वें सूत्र से जस्, शस् के आने पर नु का आगम हुआ है। इसी बात को श्लोक में भी कहा है __श्लोकार्थ—सामान्य शास्त्र की अपेक्षा से निश्चित ही विशेष शास्त्र बलवान् होता है अथवा प्राय: करके व्याकरण में पर सूत्र की अपेक्षा पूर्व सूत्र बाधित हो जाया करते हैं। ___इन् हन् पूषन् अर्यमन् इन शब्दों की उपधा को दीर्घ हो जाता है नपुंसक लिंग में जस् शस् को शि आदेश होने पर एवं असंबुद्धि सि के आने पर // 247 // अत: 'वारि न् इ' इसमें न् की उपधा को दीर्घ हो गया पश्चात् 'रघुवर्णेभ्यः' इत्यादि सूत्र से न को ण होकर वारीणि बना। संबोधन में वारि+सि