________________ कातन्त्ररूपमाला अथ व्यञ्जनान्ता: पुल्लिङ्गशब्दा यथाक्रमेणोच्यन्ते कवर्गान्ताः पुल्लिङ्गशब्दा अप्रसिद्धाः। चकारान्त: पुल्लिङ्गः सुवाच्शब्दः। सौ-व्यञ्जनाच्चेति सिलोप: / दादेहस्य ग इत्यनुवर्तते। चवर्गदगादीनां च / / 254 // चवर्गान्तस्य दृश् इत्येवमादीनां च गो भवति विरामे व्यञ्जनादौ च। पदान्ते धुटां प्रथमः / / 76 // . पदान्ते वर्तमानानां धुटां वर्णानां प्रथमो भवति अघोषे / प्रथम इत्यनुवर्तते / . वा विरामे / / 242 / / विरामे धुटां प्रथमस्तृतीयश्च वा भवति / सुवाक् सुवाग, सुवाचौ / सुवाच: / एवं सम्बुद्धौ / सुवाचं। सुवाचौ। सुवाच:। सुवाचा। सुवाग्भ्यां / सुवाग्भिः। सुवाचे। सुवाग्भ्यां। सुवाग्भ्य: / सुवाच:। सुवाचोः / सुवाचां / सुवाचि / सुवाचोः / सुपि / गत्वं / अघोषे प्रथमः // 255 // अघोषे परे धुटां प्रथमो भवति / इति कत्वं / नामिकरेत्यादिना सस्य षत्वं / कषयोगे क्षः // 256 // अथ व्यंजनांत शब्दों में क्रम से प्रथम व्यञ्जनांत पुल्लिंग शब्द चलेंगे। कवर्गांत पुल्लिग शब्द अप्रसिद्ध है। चकारांत पुल्लिंग सुवाच् शब्द है / सुवाच् + सि 'व्यञ्जनाच्च' १७८वें सूत्र से सि का लोप हो गया 'दादेर्हस्यग:' यह सूत्र अनुवृत्ति में चला आ रहा है। चवर्गान्त और दृश् के अंत को विराम या व्यंजन वाली विभक्ति के आने पर ग् हो जाता है // 254 // सुवाच् = सुवाग बना। पद के अन्त में धुट् को प्रथम अक्षर हो जाता है // 76 // 'अघोषे प्रथम:' यह सूत्र अनुवृत्ति में चला आ रहा है। विराम् में धुट् को प्रथम अथवा तृतीय अक्षर हो जाता है // 242 / / इस सूत्र से सुवाक् + सुप् 'चवर्गदृगादीनां च' इस २५४वें सूत्र से च को ग् हुआ पुन: अघोष के आने पर धुट को प्रथम अक्षर होता है // 255 // इस सूत्र से क् हो गया 'नामिकरपरः' इत्यादि १५०वें सत्र से क से स को ष हो गया तब सुवाक् +षु रहा। __ककार और षकार का योग होने पर क्ष हो जाता है // 256 // 1. यह सूत्र पहले आ चुका है। 2. यह सूत्र पहले आ चुका है।