________________ 176 कातन्त्ररूपमाला चरतीत्यत्रापि / शिबिकया चरतीति शैबिकिक:, एवं आक्षिकः / औष्ट्रिकः / शृङ्गवेरेण चरतीति शाह्नवैरिकः / पण्यात्। ताम्बूलं पण्यमस्य ताम्बूलिकः। एवमपिशब्दग्रहणात् यथाशिष्टप्रयोगं भवति। गन्ध: पण्योऽस्येति गान्धिकः / एवं सार्पिषिक। वास्त्रिकः / राजतिकः / लौहितिकः। शिल्पात् / मृदङ्गं शिल्पमस्येति मार्दङ्गिकः / एवं पाणविकः / शालिकः / काहलिकः / वैणिक: / त्रैवलिकः / वांशिकः / तालिकः। नियोगात्। शुल्कं नियोगो यस्येति शौल्किकः। एवं भाण्डागारिकः। माहानसिकः / प्रातीहारिकः / क्रीतादेः। सहस्रेण क्रीतं साहस्रिकं / एवं शातिकं / लाक्षिकं / सुवर्णेन क्रीतं सौवर्णिकं / आदिशब्दात् / लक्षण युक्तो लाक्षिकः / देवेन प्रवृत्तो दैविकः / कार्षापणेन अर्हतीति कार्षापणिकः / आयुधादपि। चक्रमायुधमस्येति चाक्रिक: एवं कौन्तिकः / तौमरिकः / खाङ्गिकः। क्रीतादेरित्यत्रादि चतुर्दश्यां दृष्टः चातुर्दश: राक्षस आदि / त्रिविद्य एव तीन विद्याओं के पारंगत 'विद्य:' पटोर्भाव: पाटवं, लघोर्भाव: लाघवं कुशलस्य भाव: कौशलं / इत्यादि / आगे कुछ अर्थों में इकण् प्रत्यय होता है। उसे श्लोक के अर्थ से प्रकट करते हैं। श्लोकार्थ—उससे खेलता है, उससे मिश्रित है, उससे तैरता है, उससे आचरण करता है, इन प्रकरणों से इकण् प्रत्यय होता है। आगे पण्य से, शिल्प अर्थ से, नियोग से, क्रीतादि से और आयुधादि से भी इकण् प्रत्यय होता है // 1 // तेन दीव्यति' अर्थ में इकण् प्रत्यय होता है उसके उदाहरण-अक्षैर्दीव्यति—पाशों से खेलता है। अक्ष + भिस् इकण्। विभक्ति का लोप होकर पूर्वस्वर को दीर्घ हुआ और अकार का लोप होकर 'आक्षिक:' बना। एवं गिरणा दीव्यति 'गैरिक:' दण्डेन दीव्यति दाण्डिक: बना। तेन संसृष्ट-उससे मिश्रित अर्थ में इकण् दधा संसृष्टं / दधि+टा इकण विभक्ति का लोप, स्वर को दीर्घ, इकार का लोप होकर दाधिकं बना। एवं क्षीरेण संसृष्टं क्षैरिकं तक्रेण संसृष्टं-ताक्रिकं, घृतेन संसृष्टं-घार्तिकं / इत्यादि। 'तेन तरति' उससे पार होता है इस अर्थ में इकण् उडुपेन तरति—उडुप +टा इकण् पूर्ववत् सारे कार्य होकर औडुपिक: छोटी नौका से पार होता है। वैसे ही द्रोण्या तरतीति द्रौणिकः / __ तेन चरति-उससे आचरण करता है या चलता है इस अर्थ में इकण् / शिबिकया चरतीति शैबिकिक: / उष्ट्रेण चरतीति औष्टिकः / पण्य अर्थ में इकण् तांबूलं पण्यं अस्य-तांबूल है व्यापार जिसका-तांबूलिकः / श्लोक में 'अपि' शब्द के ग्रहण से यथाशिष्ट प्रयोग करना चाहिये / वस्त्रं पण्यं अस्य इति वास्त्रिकः / रजतं पण्यं अस्य इति राजतिकः / इत्यादि। शिल्प अर्थ में इकण मृदंगं शिल्पं अस्य इति मार्दगिक: बना मृदंगवादनं शिल्पं अस्य ऐसा विग्रह करना। नियोग (अधिकार) अर्थ में इकण् शुल्कं नियोगो अस्येति शौल्किकः / इत्यादि / क्रीतादि अर्थ में इकण्–सहस्रेण क्रीतं, साहस्रिकं / आदि शब्द से इकण्–लक्षेण युक्तो लाक्षिक: / दैवेन प्रवृत्तो दैविकः / इत्यादि /