________________ 182 कातन्त्ररूपमाला डानुबन्धेऽन्त्यस्वरादेलोपः // 510 // डानुबन्धे प्रत्यये परे अन्त्यस्वरादेलोपो भवति / एकादशानां पूरण एकादश एकादशी एकादशं / द्वादश: एवं / अत्र आत्वं निपात: / त्रयोदश: / अत्र त्रयस्तु निपात: / चतुर्दशः / पञ्चदशः / पञ्चम: / पंचमी। पञ्चमं / एवं सप्तम: / अष्टम: / नवमः / दशम: / इत्यादि / द्वेस्तीयः॥५११॥ द्वेस्तीयो भवति पूरणेऽर्थे / द्वयो: पूरणो द्वितीय: / द्वितीया। द्वितीयं / त्रेस्तृ च // 512 // त्रेस्तीयो भवति तृआदेशश्च पूरणेऽर्थे / त्रयाणां पूरणस्तृतीयः / तृतीया। तृतीयं / अन्तस्थो डे षोः // 513 // रेफषकारयोरन्तस्थो भवति डे परे / चतुर्णां पूरणश्चतुर्थः / चतुर्थी / चतुर्थं / तवर्गस्य षटवाट्टवर्गः // 514 // षकारटवर्गान्तात्परस्य तवर्गस्य टवों भवति आन्तरतम्यात् / षण्णां पूरण: षष्ठः षष्ठी षष्ठं। कतिपयात्कतेश्च // 515 // एकादशानां पूरणः, एकादशन् + आम् ड् अ। विभक्ति का लोप, अनबंध प्रत्यय के आने पर अन्त्यस्वरादि अवयव का लोप हो जाता है॥५१०॥ अत: अन् का लोप होकर एकादश् + अ = एकादश बना / लिंग संज्ञा होकर तीनों लिंगों की सि विभक्ति में एकादश; एकादशी, एकादशं बन गया। ऐसे द्वादश शब्द बना है इसमें द्वि को 'आ' निपात से . हुआ है अत: द्वादशः, द्वादशी, द्वादशं बना। त्रयोदश: में भी त्रय शब्द का निपात हुआ है। एवं चतुर्दश:, पंचदश: आदि बने हैं इनका अर्थ है ग्यारहवाँ, बारहवाँ आदि। आगे 'म' प्रत्यय से बने हैं। जैसे पंचानां पूरण: पंचन् + आम् म, विभक्ति और णकार का लोप होकर पञ्चम हुआ लिंग संज्ञा होकर सि विभक्ति में 'पञ्चमः' बना, स्त्रीलिंग नपुंसक लिंग में पञ्चमी, पंचमं बना / एवं सप्तमः अष्टमः, नवम: दशम: / इत्यादि / पुरण अर्थ में द्वि से 'तीय' प्रत्यय होता है // 511 // द्वयोः पूरण, द्वि+ ओस् तीय, विभक्ति का लोप, लिंग संज्ञा होकर, विभक्ति आने से “द्वितीय: द्वितीया, द्वितीयं" बना। त्रि को पूरण अर्थ में तृ आदेश होकर 'तीय' प्रत्यय हो जाता है // 512 // त्रयाणां पूरणः, त्रि+ आम् विभक्ति का लोप होकर पूर्वोक्त विधि से 'तृतीयः' तृतीया, तृतीयं बना। 'ड' प्रत्यय के आने पर रकार को षकार के अन्त में 'थ' हो जाता है // 513 // चतुर्णा, पूरण:, चत्वार् + आम् विभक्ति का लोप चत्वार, के वा को उकार होकर चतुर्थ रहा लिंग संज्ञा होकर विभक्तियों के आने से चतुर्थ, चतुर्थी, चतुर्थं बना। षकार और टवर्ग से परे तवर्ग को टवर्ग हो जाता है // 514 // और वह तवर्ग को टवर्ग क्रम से होता है जैसे यहाँ थ को ठ होगा। षण्णां पूरणः, षष् + आम् विभक्ति का लोप आदि होकर षष्ठः, षष्ठी, षष्ठं बना। कतिपय और कति शब्द से 'ड' प्रत्यय आने पर पूरण अर्थ में 'थ' प्रत्यय होता है // 515 //