________________ 184 कातन्त्ररूपमाला विभक्तिसंज्ञा विज्ञेया वक्ष्यन्तेऽत: परन्तु ये। येव्द्यादेः सर्वनाम्नस्ते बहोशैव पराः स्मृताः / / 3 / / अत: परं यादिवर्जितात्सर्वनाम्नः परा ये प्रत्यया वक्ष्यन्ते ते विभक्तिसंज्ञा विज्ञेया: / तु पुनः / बहोश्चैव इति कोऽर्थः ? बहुशब्दात्परा: प्रत्यया: कथिता: श्रुतत्वात्सर्वनाम्न: कार्य प्रति विभक्तिसंज्ञा भवन्ति / तेन तदा कदा इति घोषवति न दीर्घः / तस्मिन् काले तदा “दादानीमौ तदः स्मृतौ” इति दा प्रत्ययः / कस्मिन्काले कदा। काले किं ? सर्वयदेकान्येभ्य एव दा इति दाप्रत्ययः / विभक्तिसंज्ञा इति विभक्तिकार्यं किं ? त्यदादित्वं अकारे लोपं / एकत्र / किं क इति कादेशः। पञ्चम्यास्तस्॥५२०॥ पञ्चम्यन्तात् यादिवर्जितात्सर्वनाम्नो बहोश्च परस्तस् भवति / सर्वस्मात् सर्वतः / तस्-प्रत्ययान्ता अव्ययानि भाष्यन्ते / अव्ययाद्विभक्तेलोपः / तस्मात ततः / यस्मात यतः / बहभ्यो बहतः / एवं विश्वतः / उभयत: / अन्यत: / पूर्वत: / परत: / इत्यादि / अयादेरिति किं ? द्वाभ्यां / उगवादित इत्यत्र कथं, प्रयोगतश्चेति ज्ञापयति / तेन असर्वनाम्नोप्यवधिमात्रात्तस् वक्तव्य: असर्वनाम्नोऽपि परस्तस् प्रत्ययो भवति श्लोकार्थ-इसके आगे द्वि आदि से वर्जित सर्वनाम से परे जो प्रत्यय कहे जायेंगे उन्हें विभक्ति संज्ञक समझना चाहिये। पुन: 'बहोश्चैव' शब्द का क्या अर्थ है ? बहु शब्द से परे जो प्रत्यय कहे गये हैं वे सुने गये होने से सर्वनाम के कार्य के प्रति विभक्ति संज्ञक होते हैं। इससे तदा कदा, इनमें 'घोषवति' इत्यादि १४०वें सूत्र से दीर्घ नहीं हुआ है / तस्मिन् काले तदा, 'दादानीमौ तदः स्मृतौ' इस ५३२वें सूत्र से 'दा' प्रत्यय होता है। कस्मिन् काले कदा। काले ऐसा क्यों कहा ? "काले किं सर्वयदेकान्येभ्य एव दा" इस ५२९वें सूत्र से दा प्रत्यय होता है। विभक्ति संज्ञा इससे विभक्ति कार्य क्या हुआ ? 'त्यदाद्यत्वं' इस १७२वें सूत्र से अकार होकर लोप हुआ। एकत्र किं कः' से 'क' आदेश होता है। द्वि आदि से वर्जित सर्वनाम पञ्चम्यंत और बहु शब्द से परे तस् प्रत्यय होता है // 520 // 'सर्वस्मात्' अर्थ में तस् प्रत्यय होकर सर्व+ ङसि, तस् है। विभक्ति का लोप होकर लिंग संज्ञा होकर स् का विसर्ग हुआ पुन: सि विभक्ति आई सर्वत: + सि सूत्र लगा 'अव्ययाच्च' इस - सूत्र से विभक्ति का लोप हो गया। तस् प्रत्यय वाले सभी शब्द अव्यय कहे जाते हैं। तस्मात् तद् + ङसि, तस् 'त्यदादीनाम विभक्तौ' सूत्र १७२वें से 'अकारांत होकर 'तत:' बना। ऐसे ही यस्मात् = यत:, बहुभ्यो = बहुत:, विश्वत:, उभयत: अन्यत: पूर्वत: इत्यादि / सूत्र में द्वि आदि को छोड़कर ऐसा क्यों कहा ? द्वाभ्यां में तस् प्रत्यय नहीं होगा। “उगवादितः” इत्यादि सूत्र - में गवादि से तस् प्रत्यय कैसे हुआ ? तो आगे उसे बताते हैं। अवधि मात्र असर्वनाम से भी तस् प्रत्यय होता है।' यहाँ अवधि मात्र का क्या अर्थ है ? प्रयोग मात्र से तस प्रत्यय होता है ऐसा अर्थ है। अत: इस सूत्र से अन्यत्र भी तस् प्रत्यय हो जाता है। ग्रामात्, ग्राम + ङसि, तस् विभक्ति का लोप होकर ग्रामत:, प्रयोगात् = प्रयोगतः, वृक्षात् = वृक्षतः, पटतः, घटत: इत्यादि / अस्मात् से तस् प्रत्यय हुआ है। अत: 1. यह वृत्ति में है।