________________ कारकाणि 145 परि अप आङ् योगे लिङ्गात्पञ्चमी भवति / इहापपरी वर्जने। आङ्मर्यादाभिविध्योः। परि पाटलिपुत्रावृष्टो देवः / अप त्रिगर्तेभ्यो वृष्टो देव: / आ पाटलिपुत्रावृष्टो देवः / दिगितरतॆन्यैश्च // 403 // दिग् इतर ऋते अन्य एभियोंगे वर्तमानाल्लिङ्गात्पञ्चमी भवति / पूर्वी ग्रामात् / उत्तरो ग्रामात् / इतरो देवदत्तात् / ऋते धर्मात् कुत: सुखं / अन्यो देवदत्तात् / पृथग्नानाविनाभिस्ततीया वा॥४०४॥ पृथक् नाना विना एभियोगे लिङ्गात्तृतीयापञ्चम्यौ भवत: / पृथग् देवदत्तेन / पृथग् देवदत्तात् / नाना देवदत्तेन / नाना देवदत्तात् / विना देवदत्तेन / विना देवदत्तात् / __ हेतौ च // 405 // हेतौ च वर्तमानाल्लिङ्गात्पञ्चमी भवति। कस्माद्धेतोः समागतः। अग्निमानयं धूमवत्त्वात् / अनित्योऽयं कृतकत्वात् / कस्मिन्नर्थे षष्ठी ? स्वाम्यादौ षष्ठी। के स्वाम्यादय: ? स्वामी सम्बन्ध: यहाँ अप और परि उपसर्ग वर्जन अर्थ में हैं और आङ् मर्यादा एवं अभिविधि अर्थ में है। परि पाटलिपुत्राद् वृष्टो देव:-पटना को छोड़कर मेघ वर्षा हुई। अप त्रिगर्तेभ्यो वृष्टो देव:-तीन गड्ढों को छोड़कर वर्षा हुई। आपाटलिपुत्राद् वृष्टो देव:-पटना तक मेघ वर्षा हुई। अथवा अभिविधि अर्थ में पटनापर्यंत मेघ वर्षा हुई। दिग् इतर ऋते और अन्य के योग में लिंग से पंचमी होती है // 403 // पूर्वो ग्रामात्-गाँव से पूर्व / उत्तरो ग्रामात्-गांव से उत्तर / इतरो देवदत्तात्-देवदत्त से भिन्न / ऋते धर्मात् कुत: सुखं धर्म के बिना सुख कहाँ है ? अन्यो देवदत्तात्—देवदत्त से भिन्न / पृथक्, नाना, बिना के योग में तृतीया और पंचमी दोनों होती हैं // 404 // पृथक् देवदत्तेन, पृथक् देवदत्तात्-देवदत्त से भिन्न / नांना देवदत्तेन, विना देवदत्तात्-देवदत्त के बिना। हेतु अर्थ में पंचमी होती है // 405 // कस्माद् हेतो: समागत:-किस हेतु से आप आये। अग्निमानयं धूमवत्त्वात्-धूमवाला होने से यह पर्वत अग्निवाला है। अनित्योऽयं कृतकत्वात्—यह अनित्य है क्योंकि कृतक है। किस अर्थ में षष्ठी विभक्ति होती है ? स्वामी आदि के अर्थ में षष्ठी विभक्ति होती है। स्वामी आदि से क्या-क्या लेना ? स्वामी, सम्बंध, समीप, समूह, विकार, अवयव और स्व ये स्वामी आदि कहलाते हैं। यथां-देवदत्तस्य स्वामी-देवदत्त का मालिक। संबंध अर्थ में-देवदत्तस्य वास:-देवदत्त का कपड़ा। समीप अर्थ में-पर्वतस्य समीपं–पर्वत के पास। समूह-हंसानां समूहः-हंसों का समुदाय / विकार-क्षीरस्य विकार:-दूध का विकार /