________________ 112 कातन्त्ररूपमाला अमू अमुष्य अमुष्मै पुंसोऽन्शब्दलोपः // 330 // पुमान्स् इत्येतस्य अन्शब्दस्य लोपो भवति, अघुट्स्वरे व्यञ्जने च परे / पुंसः / पुंसा। - स्यादिधुटि पदान्तवत्॥३३१॥ स्यादिधुटि परे पदान्तवत्कार्यं भवति / इति न्यायात् / मोऽनुस्वारव्यञ्जने / पुंभ्यां / पुंभिः / इत्यादि / इति सकारान्ताः // हकारान्त: पुल्लिङ्गो मधुलिह् शब्दः / मधुलिट्, मधुलिड् / मधुलिहौ। मधुलिहः / संबोधनेऽपि तद्वत्। मधुलिट्सु। एवं पुष्पलिह् इत्यादि। गोदुह् शब्दस्य तु भेदः / हचतुर्थान्तस्य धातोरित्यादिना चतुर्थत्वम्। अद +ङि है पूर्ववत् सारी प्रक्रिया करके 'ङि' को 'स्मिन्' करके 'अमुष्मिन्' बना। . असौ अमू . अमी / अमुष्मात् अमूभ्याम् अमीभ्यः अमुम् अमून् / अमुयोः .. अमीषाम् अमुना अमूभ्याम् अमीभिः / अमुष्मिन् अमुयोः अमीषु / अमूभ्याम् अमीभ्यः श्रेयन्स् शब्द में कुछ भेद है-श्रेयन्स् +सि है “सान्तमहतोनोंपधायाः” इस २८६वें सूत्र से स् की उपधा को दीर्घ होकर संयोगांत स् का लोप एवं 'सि' का लोप होकर श्रेयान्' बना। तथैव घुट विभक्ति में दीर्घ होकर श्रेयांसौ आदि बनता है। श्रेयन्स् + शस् है 'व्यंजने चैषां नि:' सूत्र १८८वें से अघट विभक्ति में न का लोप होकर 'श्रेयस:' बना। श्रेयान् श्रेयांसौ श्रेयांसः श्रेयसे श्रेयोभ्याम् श्रेयोभ्यः / हे श्रेयन् ! हे श्रेयांसौ ! हे श्रेयांसः ! श्रेयसः श्रयोभ्याम् श्रेयोभ्यः श्रेयांसम् श्रेयांसौ श्रेयसः श्रेयसः श्रेयसोः श्रेयसाम् श्रेयसा श्रेयोभ्याम् श्रेयोभिः | श्रेयसि श्रेयसोः श्रेय.सु, श्रेयस्सु पुमन्स् शब्द में कुछ भेद है। पुमन्स् + सि पूर्ववत् घुट विभक्ति में 'न' की उपधा को दीर्घ करके 'पुमान्' आदि बना। पुमन्स् + शस् है। ____ पुमन्स् इस शब्द के 'अन्' शब्द का लोप हो जाता है // 330 // यह नियम अघुट विभक्ति के आने पर होता है। अत: पुम्स् + शस् रहा पुन: 'म्' का अनुस्वार होकर 'पुंसः' बन गया। पुम्स् + भ्याम् है। सि आदि धट विभक्ति के आने पर पदांतवत कार्य हो जाता है॥३३१॥ इस न्याय से 'संयोगान्तस्य लोप:' सूत्र से स् का लोप होकर 'मोऽनुस्वारो व्यंजने' से म् का अनुस्वार होकर ''भ्याम्' बन गया। पुमान् पुमांसः / पुंभ्याम् 'भ्यः हे पुमन् हे पुमांसौ हे पुमांसः पुंभ्याम् पुंभ्यः पुमांसम् पुमांसौ पुंसाम् पुंभ्याम् | पुंसि पुंसोः पुमांसौ पुंसः पुंसोः पुंसा पुंभिः पुंसु 1. पदान्तवत्कार्य किं ? वायें तद्वर्गपञ्चममिति विकल्पः॥