________________ स्वरान्ता: स्त्रीलिङ्गाः नद्या ऐआसासाम्॥२२२॥ नदीसंज्ञकात्पराणि डवन्ति वचनानि ऐ आस् आस् आम् भवन्ति यथासंख्यम् / नदीसंज्ञाभावे मुनिशब्दवत् / रुच्यै, रुचये / रुचीभ्याम् / रुचिभ्यः / रुच्या:, रुचे: / रुचिभ्याम् / रुचिभ्य: / रुच्या, रुचेः / रुच्योः / रुचीनाम् / रुच्याम्, रुचौ / रुच्योः / रुचिषु / एवं बुद्धि वृद्धि कीर्ति कान्ति कृति युक्ति श्रेणि पङ्क्ति प्रभृतयः / द्विशब्दस्य तु भेदः / त्यदादित्वात् अ आदेश आ प्रत्ययश्च / द्वे / हे द्वे / द्वे / द्वाभ्याम् / द्वाभ्याम् / द्वाभ्याम् / द्वयोः / द्वयोः / त्रिशब्दस्य तु भेदः। त्रिचतुरोः स्त्रियां तिसृचतसृ विभक्तौ // 223 // स्त्रियां वर्तमानयोस्त्रिचत्वार्शब्दयोः तिसृ चतसृ आदेशौ भवत: विभक्तौ परत: / धुटि चेत्यरि प्राप्ते बाधकबाधनार्थोऽयं योगः। तौ र स्वरे // 224 // ___ नदी संज्ञक से परे डे आदि के आने पर क्रम से चारों को ऐ, आस्, आस्, आम् आदेश होते हैं // 222 // . और जब नदी संज्ञा नहीं हुई तब मुनि शब्द के समान रूप चलेंगे। उ आदि चार विभक्तियों में ही दो-दो रूप हैं। रुचि+ उ = मुनिवत् में 'डे' इस सूत्र से इ को ए होकर संधि हुई तो रुचये, नदीसंज्ञक में ऐ होकर रुचि+ऐ= रुच्यै बना तथैव रुचि+ ङसि अग्नि संज्ञक में 'ङसिङसोरलोपश्च' १६९वें सूत्र से इ को अ का लोप होकर रुचे: बना। और नदी संज्ञा होकर ङसि को आस् आदेश होकर रुच्या: बना। रुचि+डि-अग्नि संज्ञा में रुचौ. नदी संज्ञा में रुच्याम / रुचिः रुची रुचयः / रुच्यै,रुचये रुचिभ्याम् रुचिभ्यः हे रुचे ! हे रुची ! हे रुचयः ! | रुचेः, रुच्याः रुचिभ्याम् रुचिभ्यः रुचिम रुची रुचीः | रुचेः रुच्याः रुच्योः रुचीनाम् रुच्या रुचिभ्याम् रुचिभिः / रुचौ, रुच्याम् रुच्योः इसी प्रकार से ऊपर लिखे हुये बुद्धि, वृद्धि, आदि रूप चलते हैं। द्वि शब्द में कुछ भेद हैंद्वि+ औ 'त्यदादीनाम् विभक्तौ' इस १७२वें सूत्र से 'अ' आदेश होकर 'द्व' 'स्त्रियामादा' सूत्र से आ होकर द्वा बना 'औरिम्' से औ को 'इ' होकर द्वे बना / द्वा+भ्याम् = द्वाभ्याम् / द्वा+ ओस् 'टौ सो रे' २१३वें सूत्र से ए होकर द्वयो: बना। त्रि शब्द में कुछ भेद हैं / त्रि+जस् __ स्त्रीलिंग में वर्तमान त्रि और चत्वार् शब्द विभक्ति के आने पर तिस, चतसृ आदेश हो जाता है // 223 / ___ तिसृ+ अस् ___ यहाँ 'घुटि च' 1953 सूत्र से ऋ को अर् प्राप्त था किंतु इसे बाधित करने के लिये आगे के सूत्र का योग है। स्वर वाली विभक्ति के आने पर तिस, चतस के ऋ को र् आदेश हो जाता है // 224 // रुचिषु